मुंबई : उद्धव और राज ठाकरे के एक साथ आने से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि दोनों सिर्फ बोल-बचन तक ही सीमित;  बालासाहेब के असली वारिस सिर्फ शिंदे -  संजय निरुपम 

Mumbai: Uddhav and Raj Thackeray coming together makes no difference as both are limited to mere words; Shinde is the only real heir of Balasaheb - Sanjay Nirupam

मुंबई : उद्धव और राज ठाकरे के एक साथ आने से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि दोनों सिर्फ बोल-बचन तक ही सीमित;  बालासाहेब के असली वारिस सिर्फ शिंदे -  संजय निरुपम 

शिवसेना उपनेता और प्रवक्ता संजय निरुपम ने ठाकरे बंधुओं पर बड़ा हमला बोला है। अंधेरी में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उन्होंने कहा कि उद्धव और राज ठाकरे के एक साथ आने से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि दोनों सिर्फ बोल-बचन तक ही सीमित हैं। निरुपम ने दावा किया कि बाला साहेब ठाकरे के ‘ब्रांड’ का असली वारिस केवल डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे हैं। यह बयान दि बेस्ट एम्प्लॉइज को-ऑप क्रेडिट सोसायटी के चुनाव नतीजों के बाद आया। इस चुनाव को ठाकरे बंधुओं के गठबंधन का पहला प्रयोग माना जा रहा था, लेकिन परिणाम में उनका यह प्रयोग नाकाम रहा। चुनाव में एक तरफ मनसे और शिवसेना (यूबीटी) साथ थीं, तो दूसरी तरफ बीजेपी और शिंदे गुट की शिवसेना।

मुंबई : शिवसेना उपनेता और प्रवक्ता संजय निरुपम ने ठाकरे बंधुओं पर बड़ा हमला बोला है। अंधेरी में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उन्होंने कहा कि उद्धव और राज ठाकरे के एक साथ आने से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि दोनों सिर्फ बोल-बचन तक ही सीमित हैं। निरुपम ने दावा किया कि बाला साहेब ठाकरे के ‘ब्रांड’ का असली वारिस केवल डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे हैं। यह बयान दि बेस्ट एम्प्लॉइज को-ऑप क्रेडिट सोसायटी के चुनाव नतीजों के बाद आया। इस चुनाव को ठाकरे बंधुओं के गठबंधन का पहला प्रयोग माना जा रहा था, लेकिन परिणाम में उनका यह प्रयोग नाकाम रहा। चुनाव में एक तरफ मनसे और शिवसेना (यूबीटी) साथ थीं, तो दूसरी तरफ बीजेपी और शिंदे गुट की शिवसेना।

 

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शिंदे ने यूबीटी की पिटाई की
करीब 15 हजार वोटर्स में से लगभग 12,500 ने मतदान किया। इन वोटर्स में अधिकतर मराठी और भूमिपुत्र समुदाय से थे। चुनाव परिणामों में मनसे-यूबीटी को वोटरों ने पूरी तरह नकार दिया और बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को बढ़त दी। निरुपम ने कहा कि यदि आज शिवसेना (यूबीटी) किसी तरह टिक पाई है, तो केवल मुस्लिम वोटर्स के सहारे। अगर यह वोट बैंक भी खिसक गया तो यूबीटी को एक भी सीट नसीब नहीं होगी। निरुपम ने स्पष्ट किया कि इस चुनाव भले ही छोटा था, लेकिन इसका महत्व मुंबई की राजनीति के लिहाज से काफी बड़ा है। नतीजों ने साफ कर दिया कि मराठी वोट बैंक ठाकरे बंधुओं से हटकर शिंदे गुट और बीजेपी के पक्ष में खड़ा हो रहा है।

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