मुंबई : पढ़ाई के बहाने शहरों में घूमता रहा और नक्सल संगठन के लिए नए युवाओं को जोड़ने का काम करता रहा - माओवादी प्रवक्ता विकास नागपुरे उर्फ अनंत
Mumbai: He roamed the cities on the pretext of studying and was involved in recruiting new youth for the Naxalite organisation - Maoist spokesperson Vikas Nagpure alias Anant
एक चौंकाने वाले खुलासे में आत्मसमर्पण कर चुके माओवादी प्रवक्ता विकास नागपुरे उर्फ अनंत ने स्वीकार किया कि वह प्रतिबंधित नक्सल संगठन में सक्रिय रहते हुए मुंबई में पढ़ाई करता रहा। अनंत ने हाल ही में एक पत्रकार से बातचीत के दौरान यह जानकारी दी और बताया कि वह अपनी पढ़ाई के बहाने शहरों में घूमता रहा और संगठन के लिए नए युवाओं को जोड़ने का काम करता रहा।
मुंबई : एक चौंकाने वाले खुलासे में आत्मसमर्पण कर चुके माओवादी प्रवक्ता विकास नागपुरे उर्फ अनंत ने स्वीकार किया कि वह प्रतिबंधित नक्सल संगठन में सक्रिय रहते हुए मुंबई में पढ़ाई करता रहा। अनंत ने हाल ही में एक पत्रकार से बातचीत के दौरान यह जानकारी दी और बताया कि वह अपनी पढ़ाई के बहाने शहरों में घूमता रहा और संगठन के लिए नए युवाओं को जोड़ने का काम करता रहा। अनंत ने साफ कहा कि वह 1999 से 2002 तक मुंबई में रहा। इसके बाद वह नागपुर चला गया और वहां छात्र संगठनों के साथ काम किया। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में वह खुलकर बता रहा है कि उसने विज्ञान की जगह कला संकाय इसलिए चुना क्योंकि माओवादी संगठन को लगता था कि कला के छात्र सामाजिक मुद्दों से ज्यादा जुड़ते हैं और संगठन उन पर आसानी से असर डाल सकता है।
वीडियो में अनंत यह भी स्वीकार करता है कि नक्सल संगठन ने उसकी पढ़ाई और शहरों में रहने का पूरा खर्च उठाया। वह पढ़ाई के नाम पर शहर में घूमता रहा और छात्रों के बीच संगठन की विचारधारा फैलाता रहा। उसकी इस स्वीकृति ने यह स्पष्ट कर दिया कि नक्सली लंबे समय से आम छात्रों के बीच छिपकर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश करते रहे हैं। विशेषज्ञ लंबे समय से चेतावनी देते रहे हैं कि कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी और कार्यकर्ता माओवादियों की वैचारिक मदद करते हैं और कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों में नक्सली सोच फैलाते हैं। यह प्रवृत्ति देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन चुकी है।
अनंत का खुलासा दिखाता है कि नक्सली किस तरह पढ़ाई के नाम पर युवाओं में घुसपैठ करते हैं। वह खुद पढ़ाई करता रहा, छात्र संगठनों के साथ घुलता मिलता रहा और दूसरी तरफ प्रतिबंधित संगठन के लिए काम भी करता रहा। यह खुलासा बताता है कि माओवादी शहरों और शैक्षणिक संस्थानों में छिपकर युवाओं को गुमराह करने की रणनीति अपनाते रहे हैं। यह मामला साफ करता है कि नक्सली सिर्फ जंगलों में नहीं छिपे रहते बल्कि शहरों में भी सक्रिय रहते हैं और पढ़ाई के नाम पर भोले युवाओं को फंसाते हैं। उनकी ये गतिविधियां समाज और राष्ट्र दोनों के लिए खतरा पैदा करती हैं, इसलिए सुरक्षा एजेंसियां ऐसे तत्वों पर कड़ी नजर रख रही हैं।

