न्यायालयों में ५१ लाख ७९ हजार ४२३ मामले विचाराधीन...

51 lakh 79 thousand 423 cases are pending in the courts...

न्यायालयों में ५१ लाख ७९ हजार ४२३ मामले विचाराधीन...

वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट से लेकर जिला सत्र न्यायालय तक लंबित मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है। जनवरी २०१८ के आंकड़ों के मुताबिक, देश में २ करोड़ ९८ लाख ४४ हजार ३५८ मामले ‘तारीख’ का इंतजार कर रहे थे। यहां उल्लेखनीय है कि उच्च न्यायालयों और जिला सत्र न्यायालयों में ३० लाख २६ हजार ६७३ मामले १० साल से अधिक समय से लंबित थे।

मुंबई : मुंबई हाई कोर्ट और महाराष्ट्र के विभिन्न न्यायालयों में ५१ लाख ७९ हजार ४२३ मामले विचाराधीन हैं। इसमें उच्च न्यायालय और जिला सत्र न्यायालय के मामले शामिल हैं। विधि और न्याय मंत्रालय के सूत्रों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि देशभर की अदालतों में लंबित मामलों का बैकलॉग हर साल बढ़ता जा रहा है।

वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट से लेकर जिला सत्र न्यायालय तक लंबित मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है। जनवरी २०१८ के आंकड़ों के मुताबिक, देश में २ करोड़ ९८ लाख ४४ हजार ३५८ मामले ‘तारीख’ का इंतजार कर रहे थे। यहां उल्लेखनीय है कि उच्च न्यायालयों और जिला सत्र न्यायालयों में ३० लाख २६ हजार ६७३ मामले १० साल से अधिक समय से लंबित थे।

महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में लंबित मामलों और उनके पीछे के कारणों को निपटाने के लिए विशेष प्रयास किया गया है। २४ जुलाई २०२३ तक अद्यतन आंकड़ों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की केवल दो सीटें खाली हैं। सर्वोच्च न्यायालय में स्वीकृत न्यायाधीशों की संख्या ३४ है और ३२ न्यायाधीश कार्यरत हैं। देशभर के २५ उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या १,११४ है।

इनमें से ७७३ जज कार्यरत हैं। ऐसे में जजों की ३४१ सीटें अभी भी खाली हैं इन २५ उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या ६० लाख ६३ हजार ४९९ है। २०१८ में उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या १०७९ थी। दरअसल ६७८ जज कार्यरत थे और ४०१ सीटें खाली थीं देशभर में जिला सत्र एवं अधीनस्थ न्यायालय के न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या २२ हजार ६७७ थी। हालांकि, केवल १६ हजार ६९३ न्यायाधीश ही कार्यरत थे और न्यायाधीशों के ५९८४ पद रिक्त थे।

महत्वपूर्ण बात यह है कि लंबित मामलों की बढ़ती संख्या में भारत सरकार और उसके मंत्रालयों की बड़ी हिस्सेदारी है। वेंâद्र सरकार के मंत्रालयों और विभिन्न विभागों ने अन्य विभागों के खिलाफ अदालतों में याचिकाएं दायर की हैं। लंबित मामलों में लगभग पचास प्रतिशत सरकारी हैं। इसके चलते अदालतों में लंबित मामलों का अंबार लग गया है।

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