मुंबई: वॉर अगेंस्ट रेलवे राउडीज; 180 से ज़्यादा गुंडों को पुलिस के हवाले किया

Mumbai: War against railway rowdies; more than 180 goons handed over to police

मुंबई: वॉर अगेंस्ट रेलवे राउडीज; 180 से ज़्यादा गुंडों को पुलिस के हवाले किया

महिलाओं और लड़कियों के साथ उत्पीड़न और उनका मजाक उड़ाना सामान्य बात है और आज समाज इस सोच का आदी हो गया है. आए दिन इसके उदाहरण भी सामने आते रहते हैं. साथ ही इन घटनाओं को लेकर लोगों प्रतिक्रिया भी उदासीन है. महिलाओं के साथ उत्पीड़न की घटनाओं को लेकर लोगों को सोच में बदलाव लाने की बजाय, हम क्या कर सकते हैं' ऐसा होता ही रहता है, हमें एक लड़की होने के नाते अपना ख्याल रखना चाहिए जैसी बेकार सलाह दी जाती है.

 

मुंबई: महिलाओं और लड़कियों के साथ उत्पीड़न और उनका मजाक उड़ाना सामान्य बात है और आज समाज इस सोच का आदी हो गया है. आए दिन इसके उदाहरण भी सामने आते रहते हैं. साथ ही इन घटनाओं को लेकर लोगों प्रतिक्रिया भी उदासीन है. महिलाओं के साथ उत्पीड़न की घटनाओं को लेकर लोगों को सोच में बदलाव लाने की बजाय, हम क्या कर सकते हैं' ऐसा होता ही रहता है, हमें एक लड़की होने के नाते अपना ख्याल रखना चाहिए जैसी बेकार सलाह दी जाती है.

 

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हालांकि, कुछ लोगों ऐसे भी होते हैं जो मानते हैं कि उत्पीड़न करना और उसे होते हुए देखना एक सोशल डिसओर्डर है. ऐसा एक शख्स दीपेश टांक हैं. दीपेश टांक ने महिलाओं पर उत्पीड़न और अभद्र हमले की परेशान करने वाली घटनाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अपने समान विचारधारा वाले दोस्तों के साथ एक अभियान शुरू किया है.

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वॉर अगेंस्ट रेलवे राउडीज
जानकारी के मुताबिक उनके अभियान का नाम है 'वॉर अगेंस्ट रेलवे राउडीज'. इस अभियान के लिए एक टीम यह दिखाने के लिए काम कर रही है कि संवेदनशील युवा अब ऐसी घटनाओं को देखकर मूकदर्शक नहीं रहेंगे, बल्कि अपनी 'तीसरी आंख' खोलेंगे और अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाएंगे.
16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में एक बस में एक युवती के साथ हुए गैंग रेप के बाद पूरा देश हैरान रह गया था. दीपेश कहते हैं कि उस समय उन्हें एक पुरुष होने के नाते खुद पर शर्मिंदगी महसूस हुई. उस समय दीपेश सोचने लगे कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए वह क्या कर सकते हैं.

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पुलिस में करने लगे शिकायत
इसी बीच एक बार बांद्रा जाने के लिए मलाड स्टेशन पर ट्रेन पकड़ते समय उन्होंने चलती ट्रेन से कुछ लोगों को प्लेटफॉर्म पर खड़ी महिलाओं पर फूल फेंकते देखा. उन्होंने रेलवे पुलिस को इस बारे में बताया, लेकिन पुलिस ने सवाल उठाया कि अगर फूल फेंकने वाले लोग ट्रेन से उतर गए तो उन्हें कैसे पकड़ा जाएगा? इस घटना के बाद, दीपेश और उनके दोस्त ट्रेन में महिलाओं के साथ होने वाली हर हरकत की शिकायत पुलिस से करने लगे.

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2013 में शुरू किया वॉर अगेंस्ट रेलवे राउडीज
शुरुआत में रेलवे पुलिस और आरपीएफ ने इन शिकायतों के प्रति उदासीनता दिखाई. इसके समाधान के लिए अगस्त 2013 में दीपेश और उनकी टीम ने 'अगेंस्ट रेलवे राउडीज' अभियान शुरू किया. इसके बाद चार दिनों तक वॉर अगेंस्ट रेलवे राउडीज की टीम और सिविल ड्रेस रेलवे पुलिस ने सुबह के व्यस्त समय में गोरेगांव और मलाड स्टेशनों पर नजर रखी.

इस दौरान अगेंस्ट रेलवे राउडीज की एक टीम ने गोरेगांव स्टेशन पर महिलाओं को छूने और उनके साथ छेड़छाड़ करने वाले पुरुषों की हरकतों को कैमरे में रिकॉर्ड किया और फिर अगले स्टेशन पर इंतजार कर रही एक अन्य टीम को ट्रेन में गुंडों का हुलिया बताया. दीपेश टांक ने बताया इस विवरण के आधार पर टीम और रेलवे पुलिस ने अगले स्टेशन पर गुंडों को पकड़ लिया. इसके बाद पुलिस ने उनके खिलाफ कार्रवाई की. हालांकि, चार दिन बाद पुलिस ने अभियान से मुंह मोड़ लिया.उन चार दिनों में टीम ने रेलवे पुलिस की मदद से ट्रेन में 35 से ज़्यादा गुंडों को पकड़ा. यह बात सामने आने के बाद अधिकारी भी महिला सुरक्षा के मुद्दे पर जाग उठे.

महिला कोच में कैमरे
अब, रेलवे स्टेशनों और महिला डिब्बों में भी कैमरे लग गए हैं. पिछले कुछ वर्षों में सुरक्षा उपायों को लागू किया गया है. साथ ही रेलवे स्टेशनों पर गश्त और रात में डिब्बों में पुलिस की ड्यूटी जैसे सकारात्मक बदलाव भी हुए हैं. दीपेश गर्व से कहते हैं, "इसका नतीजा यह हुआ है कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों में काफी कमी आई है." शुरुआती चार दिनों के बाद पुलिस ने वॉर अगेंस्ट रेलवे राउडीज अभियान से अपनी भागीदारी वापस ले ली. हालांकि, दीपेश और उनकी टीम ने यह काम जारी रखा.

उन्होंने बताया कि अक्सर, भारी भीड़ में मोबाइल और बैग लेकर वीडियो रिकॉर्ड करना मुश्किल होता था. इसके अलावा किसी को अपनी हरकतें रिकॉर्ड करते देख, गुंडे आक्रामक हो जाते थे और हम पर हमला कर देते थे. उन्हें दो-तीन झड़पें भी याद हैं.

180 से ज़्यादा गुंडों को पुलिस के हवाले किया
मुसीबत आने पर भी काम रुक नहीं सकता था. इसलिए, उपाय के तौर पर दीपेश ने एक जासूसी कैमरे की तलाश शुरू कर दी. दीपेश ने अपने एक दोस्त की मदद से 25 हजार रुपये खर्च करके एक बड़ा वीडियो रिकॉर्डर और हाई क्वालिटी वाला कैमरा वाला चश्मा खरीदा. फिर, इन चश्मों की मदद से दीपेश ने गुंडों की हरकतों को रिकॉर्ड करना शुरू कर दिया. इसके जरिए दीपेश अब तक 180 से ज़्यादा गुंडों को पुलिस के हवाले कर चुके हैं.

दीपेश टांक कहते हैं अगर कोई शख्स अपनी आंखों के सामने महिला के साथ हो रही छेड़छाड़ को अनदेखा कर देता है, अगर वह किसी पुरुष से महिला को पीट रहा है और हस्तक्षेप नहीं करता, भीड़ भरी बस या ट्रेन में महिलाओं को प्राथमिकता देने के बजाय उसको धक्का देता है, यह मुझे एक पुरुष के रूप में शर्मिंदा करता है.जब उनके आस-पास ऐसा हो रहा हो, तो लोगों को कम से कम संवेदनशीलता दिखानी चाहिए और हस्तक्षेप करना चाहिए.