मुंबई : छगन भुजबल को महायुति मंत्रिमंडल में मंत्री के रूप में फिर से शामिल करने पर शिवसेना के दो गुटों के बीच जुबानी जंग
Mumbai: War of words between two factions of Shiv Sena over re-inclusion of Chhagan Bhujbal as minister in Mahayuti cabinet
एनसीपी नेता छगन भुजबल को महायुति मंत्रिमंडल में मंत्री के रूप में फिर से शामिल करने पर शिवसेना के दो गुटों के बीच जुबानी जंग छिड़ गई है. उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने अपने मुखपत्र 'सामना' के माध्यम से एकनाथ शिंदे पर निशाना साधा, यह सवाल उठाते हुए कि वे उस व्यक्ति के बगल में कैसे बैठ सकते हैं जिसने पार्टी संस्थापक बाल ठाकरे को गिरफ्तार करवाया था.
मुंबई : एनसीपी नेता छगन भुजबल को महायुति मंत्रिमंडल में मंत्री के रूप में फिर से शामिल करने पर शिवसेना के दो गुटों के बीच जुबानी जंग छिड़ गई है. उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने अपने मुखपत्र 'सामना' के माध्यम से एकनाथ शिंदे पर निशाना साधा, यह सवाल उठाते हुए कि वे उस व्यक्ति के बगल में कैसे बैठ सकते हैं जिसने पार्टी संस्थापक बाल ठाकरे को गिरफ्तार करवाया था. शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने पलटवार करते हुए कहा कि भुजबल उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान भी मंत्री थे. आइए, जानते हैं ढाई दशक पुराने उस घटनाक्रम को नजर डालें जिसकी महाराष्ट्र के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में चर्चा हो रही है.
बाल ठाकरे और छगन भुजबल का रिश्ता
बाल ठाकरे और छगन भुजबल के बीच गुरु और चेले का रिश्ता था जो आगे चलकर दुश्मनी में तब्दील हो गया. ठाकरे और भुजबल के बीच दुश्मनी 1991 में शुरू हुई जब भुजबल ने शिवसेना के भीतर पहली बगावत की. भुजबल, ठाकरे के मनोहर जोशी को विधानसभा में विपक्ष का नेता नियुक्त करने के फैसले से नाराज थे. इसके अलावा, ठाकरे की मंडल आयोग के खिलाफ टिप्पणियों ने ओबीसी नेता भुजबल को नाराज़ कर दिया. भुजबल एक कद्दावर ओबीसी नेता थे.
शरद पवार, जो भुजबल की बेचैनी को करीब से देख रहे थे, ने उनके शिवसेना से कांग्रेस के कई विधायकों के साथ शामिल होने की राह आसान की. यह ठाकरे की छवि के लिए बड़ा झटका था. इस विद्रोह के कारण शिवसेना को विपक्ष के नेता का पद बीजेपी को देना पड़ा, जो तब विधानसभा में सबसे अधिक विधायकों वाली पार्टी बन गई.
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