दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के अधिकार पर केंद्र ने जारी किया अध्यादेश, जानिए डिटेल्स
Modi Government bring ordinance to setup panel for Delhi Services...
इस अध्यादेश में अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग में लेफ्टिनेंट गवर्नर के अधिकारों को उल्लेख किया गया है। अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग के लिए अथॉरिटी का गठन किया गया है।
नई दिल्ली: दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के पावर को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर दिया है। इस अध्यादेश में अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग में लेफ्टिनेंट गवर्नर के साथ ही दिल्ली सरकार के अधिकारों का उल्लेख किया गया है। माना जा रहा है कि केंद्र ने एक बार फिर दिल्ली के उपराज्यपाल को उनका खोया हुआ अधिकार वापस दे दिया है।
इस अध्यादेश की अहम बात ये है कि अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग के लिए एक अथॉरिटी बना दी गई है। इस नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी में दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल, दिल्ली के चीफ सेक्रेट्री और प्रिंसिपल होम सेक्रेट्री होंगे। इस अथॉरिटी में अगर अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग में कोई विवाद होता है तो वोटिंग होगी। अगर मामला इससे भी नहीं सुलझा तो आखिरी फैसला उपराज्यपाल लेंगे। यानी एक तरह से दिल्ली के उपराज्यपाल को फिर से पहले का अधिकार वापस मिल गया है। अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग, विजिलेंस का काम यही अथॉरिटी देखेगी। दिल्ली के मुख्यमंत्री इस अथॉरिटी के पदेन अध्यक्ष होंगे।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि उपराज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह पर काम करेंगे क्योंकि मुख्यमंत्री ही राज्य का असली पावर सेंटर है। लेकिन अध्यादेश से केंद्र ने एक बार फिर से उपराज्यपालको पावरफुल कर दिया है। एक तरह से केंद्र सरकार ने अध्यादेश के जरिए सीएम केजरीवाल के अधिकारों पर फिर से कैंची चला दी है.
सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने 11 मई को अपने फैसले में कहा था दिल्ली में अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार को है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, चुनी हुई सरकार को प्रशासन चलाने की शक्तियां मिलनी चाहिए अगर ऐसा नहीं होता तो यह संघीय ढांचे के लिए बहुत बड़ा नुकसान है। अधिकारी जो अपनी ड्यूटी के लिए तैनात हैं उन्हें मंत्रियों की बात सुननी चाहिए अगर ऐसा नहीं होता है तो यह सिस्टम में बहुत बड़ी खोट है। चुनी हुई सरकार में उसी के पास प्रशासनिक व्यस्था होनी चाहिए। अगर चुनी हुई सरकार के पास ये अधिकार नहीं रहता तो फिर ट्रिपल चेन जवाबदेही की पूरी नहीं होती।
उन्होंने कहा कि NCT एक पूर्ण राज्य नही है ऐसे में राज्य पहली सूची में नहीं आता। NCT दिल्ली के अधिकार दूसरे राज्यों की तुलना में कम है। फैसला सुनाने से पहले उन्होंने कहा था कि ये फैसला सभी जजों की सहमित से लिया गया है। उन्होंने कहा कि ये बहुमत का फैसला है। सीजेआई ने फैसला सुनाने से पहले कहा कि दिल्ली सरकार की शक्तियों को सीमित करने को लिए केंद्र की दलीलों से निपटना आवश्यक है। इसके अलावा उन्होंने कहा कि ये मामला सिर्फ सर्विसेज पर नियंत्रण का है।
4 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र बनाम दिल्ली विवाद के कई मसलों पर फैसला दिया था लेकिन सर्विसेज यानी अधिकारियों पर नियंत्रण जैसे कुछ मुद्दों को आगे की सुनवाई के लिए छोड़ दिया था। 14 फरवरी 2019 को इस मसले पर 2 जजों की बेंच ने फैसला दिया था लेकिन दोनों जजों, जस्टिस ए के सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण का निर्णय अलग-अलग था। इसके बाद मामला 3 जजों की बेंच के सामने लगा और आखिरकार चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने मामला सुना। अब आज इस मामले पर फैसला आया है।

