मुंबई : 1300 एमएलडी गंदा पानी सीधे अरब सागर में छोड़ा जा रहा है; गंभीर पर्यावरणीय संकट
Mumbai: 1300 MLD of sewage is being discharged directly into the Arabian Sea; a serious environmental crisis
देश की आर्थिक राजधानी, इस समय एक गंभीर पर्यावरणीय संकट का सामना कर रही है। हर दिन शहर से करीब 1300 एमएलडी (मिलियन लीटर प्रतिदिन) बिना शुद्ध किया गया गंदा पानी सीधे अरब सागर में छोड़ा जा रहा है। इसमें घरेलू सीवेज के साथ-साथ औद्योगिक कचरा भी शामिल है। नतीजा यह है कि समुद्र तटों पर बदबू, समुद्री जीवन को नुकसान और स्थानीय मछुआरों की रोज़ी-रोटी पर सीधा असर पड़ रहा है।
मुंबई : देश की आर्थिक राजधानी, इस समय एक गंभीर पर्यावरणीय संकट का सामना कर रही है। हर दिन शहर से करीब 1300 एमएलडी (मिलियन लीटर प्रतिदिन) बिना शुद्ध किया गया गंदा पानी सीधे अरब सागर में छोड़ा जा रहा है। इसमें घरेलू सीवेज के साथ-साथ औद्योगिक कचरा भी शामिल है। नतीजा यह है कि समुद्र तटों पर बदबू, समुद्री जीवन को नुकसान और स्थानीय मछुआरों की रोज़ी-रोटी पर सीधा असर पड़ रहा है। पर्यावरणविद राजेश रूपारेल ने जब महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल की जानकारी सूचना का अधिकार के ज़रिए मांगी तो जवाब मिला “संपूर्ण आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।” लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता जितेंद्र घाडगे ने खुलासा किया कि 17 जून 2025 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण में दाखिल हलफनामे में एमपीसीबी ने खुद विस्तृत आंकड़े दिए थे। इनमें 2024-25 के दौरान 128 चेतावनी नोटिस, 39 कारण बताओ नोटिस, 22 प्रस्तावित आदेश, 4 बंदी आदेश और 42 अंतरिम कार्रवाई दर्ज करने की बात कही गई थी। घाडगे का कहना है “यह जनता के साथ गंभीर विश्वासघात है। मंडल जनता और मीडिया को आश्वस्त करने वाली झूठी तस्वीर दिखाता है, लेकिन असली गैर-अनुपालन का सच सिर्फ अदालत में बताता है। ऐसे में निगरानी व्यवस्था पर भरोसा कैसे किया जाए?”
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स की हालत
सूचना का अधिकार से मिले आंकड़ों के अनुसार, मुंबई हर दिन 2,814 एमएलडी सीवेज पैदा करता है, लेकिन इसका सिर्फ 1,475 एमएलडी ही ट्रीट होता है। बाकी लगभग 1,338 एमएलडी गंदा पानी सीधे समुद्र और खाड़ियों में चला जाता है। शहर के अधिकतर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स मानकों पर खरे नहीं उतरते। उदाहरण के तौर पर वर्ली एसटीपी में पिछले एक साल में बीओडी और एसएस स्तर राष्ट्रीय मानकों से 10 गुना ज्यादा पाए गए।
पर्यावरण पर असर
पर्यावरणविदों के अनुसार, इस प्रदूषण का सीधा असर समुद्र और आसपास की पारिस्थितिकी पर हो रहा है। मछली पकड़ने की उपज घट रही है, जिससे मछुआरों को आर्थिक नुकसान हो रहा है। समुद्र तटों पर गंदगी और बदबू फैल रही है। बरसात के दिनों में जल जनित बीमारियां जैसे डेंगू और टाइफाइड बढ़ रही हैं। सबसे खतरनाक असर मैंग्रोव और खाड़ियां, जो मुंबई की प्राकृतिक बाढ़ सुरक्षा हैं, धीरे-धीरे नष्ट हो रही हैं।
औद्योगिक क्षेत्रों की भी बड़ी लापरवाही
एनजीटी में दाखिल हलफनामे में एमपीसीबी ने यह भी माना कि तारापुर जैसे औद्योगिक क्षेत्रों के सीईटीपी (कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट) 60% मामलों में मानकों का पालन नहीं करते। यहां का सीओडी स्तर 1,600 एमजी/l पाया गया, जो मानक से 6 गुना ज्यादा है। इसकी वजह से आसपास के गाँवों में भूजल और सतही जल दूषित हो चुका है। समुद्री जीव-जंतु और आम लोगों का स्वास्थ्य दोनों खतरे में हैं। मुंबई का अरब सागर इस समय प्रदूषण की बड़ी मार झेल रहा है। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स की खराब स्थिति, औद्योगिक क्षेत्रों की लापरवाही और सरकारी एजेंसियों का दोहरा रवैया इस संकट को और गहरा बना रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर समय रहते सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो यह समस्या न केवल पर्यावरणीय, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य और आर्थिक संकट में भी बदल सकती है।

