यवतमाल : किसान का दावा बड़े विवाद का कारण बन गया; 5 करोड़ का दावा निकला झूठा 

Yavatmal: Farmer's claim becomes the reason for big controversy; 5 crore claim turned out to be false

  यवतमाल : किसान का दावा बड़े विवाद का कारण बन गया; 5 करोड़ का दावा निकला झूठा 

जिले के पुसद तालुका के खारशी गांव में एक किसान का दावा बड़े विवाद का कारण बन गया। किसान केशव शिंदे ने कहा था कि उसकी ज़मीन पर खड़ा एक पेड़ लाल चंदन का है और उसकी कीमत लगभग पांच करोड़ रुपये है। लेकिन जांच के बाद सामने आया कि यह पेड़ लाल चंदन का नहीं बल्कि टेरोकार्पस मार्सुपियम प्रजाति का है, जिसकी वास्तविक कीमत मात्र 11,000 रुपये आंकी गई। यह मामला तब सामने आया जब वर्धा-यवतमाल-पुसद-नांदेड़ रेलवे परियोजना के लिए केशव शिंदे की ज़मीन अधिग्रहित की गई। 

यवतमाल : जिले के पुसद तालुका के खारशी गांव में एक किसान का दावा बड़े विवाद का कारण बन गया। किसान केशव शिंदे ने कहा था कि उसकी ज़मीन पर खड़ा एक पेड़ लाल चंदन का है और उसकी कीमत लगभग पांच करोड़ रुपये है। लेकिन जांच के बाद सामने आया कि यह पेड़ लाल चंदन का नहीं बल्कि टेरोकार्पस मार्सुपियम प्रजाति का है, जिसकी वास्तविक कीमत मात्र 11,000 रुपये आंकी गई। यह मामला तब सामने आया जब वर्धा-यवतमाल-पुसद-नांदेड़ रेलवे परियोजना के लिए केशव शिंदे की ज़मीन अधिग्रहित की गई। 
 
 
अधिग्रहण के दौरान उन्हें ज़मीन का मुआवजा तो दे दिया गया, लेकिन पेड़ों और भूमिगत पाइपलाइन के नुकसान के लिए मुआवजा नहीं मिला। इससे नाराज होकर शिंदे ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ में याचिका दाखिल की। अदालत ने मामले की सुनवाई करते हुए रेलवे को आदेश दिया कि शिंदे को एक करोड़ रुपये मुआवज़े के रूप में दिए जाएं। इस आदेश के बाद शिंदे को 50 लाख रुपये की राशि तत्काल दे दी गई, जबकि शेष 50 लाख रुपये का भुगतान पेड़ के मूल्यांकन रिपोर्ट आने के बाद करने का निर्णय लिया गया।
 
कोर्ट के निर्देश पर बैंगलोर से एक विशेषज्ञ संस्था को बुलाया गया, जिसने पेड़ का निरीक्षण किया। जांच रिपोर्ट में साफ हुआ कि पेड़ लाल चंदन का नहीं है। संस्था ने बताया कि यह पेड़ टेरोकार्पस मार्सुपियम प्रजाति का है, जिसे आमतौर पर "इंडियन कीनो ट्री" कहा जाता है। इस प्रजाति के पेड़ की बाजार में कोई विशेष मांग नहीं होती और इसकी कीमत केवल 11,000 रुपये आंकी गई। इस खुलासे के बाद अदालत में शिंदे का दावा गलत साबित हो गया। अब आगे की सुनवाई में यह तय किया जाएगा कि शेष 50 लाख रुपये का भुगतान किया जाएगा या नहीं।
 
मामला फिलहाल अदालत की निगरानी में है और रेलवे विभाग ने भी राहत की सांस ली है, क्योंकि लाल चंदन की पहचान होने पर उन्हें करोड़ों रुपये का मुआवज़ा देना पड़ सकता था। विशेषज्ञों का कहना है कि लाल चंदन (रेड सैंडलवुड) और टेरोकार्पस मार्सुपियम पेड़ में बाहरी समानता होती है, लेकिन वैज्ञानिक जांच से ही सही प्रजाति की पहचान हो पाती है। लाल चंदन अपनी दुर्लभता और अंतरराष्ट्रीय बाजार में ऊंची कीमत के कारण अत्यधिक मूल्यवान होता है, जबकि टेरोकार्पस मार्सुपियम का उपयोग मुख्य रूप से औषधीय और स्थानीय लकड़ी के कामों में होता है।
Sabri Human Welfare Foundation Ngo

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