नई दिल्ली :हस्तशिल्प निर्यातक कंपनी पर 50 करोड़ रुपये का जुर्माना; सुप्रीम कोर्ट ने एनजीटी के आदेश को रद कर दिया
New Delhi: Rs 50 crore fine imposed on handicraft exporting company; Supreme Court quashes NGT order
देश के शीर्ष न्यायालय ने एनजीटी के उस आदेश पर आपत्ति जताई है, जिसमें पर्यावरण मानदंडों का उल्लंघन करने वाली मुरादाबाद स्थित हस्तशिल्प निर्यातक कंपनी पर 50 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था। दरअसल, मामले से जुड़ी सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एनजीटी के आदेश को रद कर दिया। न्यायालय ने इसके साथ ही कहा कि देश का कानून राज्य या किसी भी जांच एजेंसी को पर्यावरण संबंधी मामलों में किसी का मांस खींचने की अनुमति नहीं देता।
नई दिल्ली : देश के शीर्ष न्यायालय ने एनजीटी के उस आदेश पर आपत्ति जताई है, जिसमें पर्यावरण मानदंडों का उल्लंघन करने वाली मुरादाबाद स्थित हस्तशिल्प निर्यातक कंपनी पर 50 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था। दरअसल, मामले से जुड़ी सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एनजीटी के आदेश को रद कर दिया। न्यायालय ने इसके साथ ही कहा कि देश का कानून राज्य या किसी भी जांच एजेंसी को पर्यावरण संबंधी मामलों में किसी का मांस खींचने की अनुमति नहीं देता।
मुरादाबाद की कंपनी से जुड़ा है मामला
बता दें कि शीर्ष अदालत ने पर्यावरण मानदंडों के कथित उल्लंघन के लिए मुरादाबाद स्थित हस्तशिल्प निर्यातक सीएल गुप्ता एक्सपोर्ट लिमिटेड पर जुर्माना लगाने वाले एनजीटी के लंबे फैसले की भी आलोचना की। वहीं, 22 अगस्त को अपने फैसले में शीर्ष न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि अगर कंपनी ने नियमों का उल्लंघन किया, तो उसके कारोबार के आधार पर लगाया गया जुर्माना कानूनी आधार से रहित था।
एनजीटी के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई आपत्ति
मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मापदंडों के कथित उल्लंघन के लिए इस कंपनी पर जुर्माना लगाने वाले एनजीटी के 145 पन्नों के फैसले की आलोचना भी की। कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि विवेक का इस्तेमाल उपयोग के लाए गए पन्नों की संख्या के अनुपात में नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने एनजीटी को दी नसीहत
शीर्ष न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि न्यायिक निर्णय की मूल आत्मा विवेकापूर्ण विचार है और अदालतों व अधिकरणों को केवल सामान्य रूप से कानून का उल्लेख करने वाले भाषणात्मक रुख अपनाने से बचना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इससे अधिक कुछ नहीं कह सकते एवं एनजीटी के आदेश को ऊपर उल्लेखित सीमा तक निरस्त करने वाली अपील को स्वीकार करते हैं।
गलत तरीके से लगाया गया जुर्माना
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वार्षिक कारोबार के आधार पर जुर्माना लगाना गलत है। चूंकि एनजीटी ने मामले में कंपनी का राजस्व 100 से 500 करोड़ के बीच में पाया। इसे देखते हुए एनजीटी ने कंपनी 50 करोड़ो का जुर्माना ठोक दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जुर्माना लगाने के लिए एनजीटी द्वारा अपनाई गई पद्धिति किसी भी विधिक सिद्धांत के तहत स्वीकार्य नहीं है। कोर्ट ने कहा कि हम इस टिप्पणी से पूर्णतः सहमत है और यह जोड़ते हैं कि कानून किसी भी राज्य या उसकी एजेंसी को पर्यावरण से जुड़े किसी भी मामले पर एक दमड़ी दमड़ी तक वसूलने की परमिशन नहीं दे सकता है। (समाचार एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)

