मुंबई : महाराष्ट्र के मन में जो है वही होगा!
Mumbai: Whatever is in Maharashtra's mind will happen!

महाराष्ट्र विधानसभा के साथ ही लोकसभा के लिहाज से भी एक महत्वपूर्ण प्रदेश है. पिछले कुछ साल में यहां की राजनीति में कई बदलाव आए हैं. दो शक्तिशाली राजनीतिक घरानों के उत्तराधिकारियों के बीच महत्वाकांक्षाओं ने अंगराई ली और फिर दरारें स्पष्ट हो गईं. कटुता इतनी बढ़ी कि परिवार के साथ ही राजनीतिक दलों में भी बंटवारा हो गया.
मुंबई : महाराष्ट्र विधानसभा के साथ ही लोकसभा के लिहाज से भी एक महत्वपूर्ण प्रदेश है. पिछले कुछ साल में यहां की राजनीति में कई बदलाव आए हैं. दो शक्तिशाली राजनीतिक घरानों के उत्तराधिकारियों के बीच महत्वाकांक्षाओं ने अंगराई ली और फिर दरारें स्पष्ट हो गईं. कटुता इतनी बढ़ी कि परिवार के साथ ही राजनीतिक दलों में भी बंटवारा हो गया. आपने ठीक समझा! बात हो रही है पवार और ठाकरे परिवार की. एक तरफ अजित पवार चाचा शरद पवार की छांव से अलग हो गए. उन्होंने विधायकों के संख्या बल के दम पर एनसीपी पर भी कब्जा लिया. वहीं, ठाकरे परिवार में टूट हो गई. राज ठाकरे ने खुद को अलग कर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नाम से नई पार्टी का गठन कर लिया. अब पिछले कुछ महीनों से दोनों घरानों में एका की बात होने लगी है. खासकर उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के बीच की संभावित एकता को लेकर चर्चाएं काफी आम हो चुकी हैं. अब शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के मुखपत्र ‘सामना’ के फ्रंट पेज पर उद्धव और राज ठाकरे की एक साथ वाली तस्वीर छापी गई है. खबर का शीर्षक है – महाराष्ट्र के मन में जो है वही होगा!
‘सामना’ की इस रिपोर्ट में शिवसेना-मनसे की एकता के बारे में कहा गया है कि सहमति बनेगी. इस ऐलान के बाद महाराष्ट्र के राजनीतिक पंडितों के साथ ही आमलोागों में भी उत्सुकता बढ़ गई है. दरअसल, राज ठाकरे ने कुछ सप्ताह पहले दिए एक इंटरव्यू में भाई उद्धव के साथ आने की बात कही थी. उसके बाद से ही कयासबाजी का दौर लगातार जारी है. राज के इस बयान के बाद उद्धव गुट की तरफ से भी पॉजिटिव रिस्पांस आया. कई नेताओं की ओर से समय-समय पर ठाकरे परिवार की संभावित एकता पर बयान सामन आते रहे हैं.
बता दें कि उद्धव और राज ठाकरे के अलग होने से दोनों के राजनीतिक रसूख में कमी आई है. राज ठाकरे जहां अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं, वहीं उद्धव का कद भी लगातार कम हुआ है. एकनाथ शिंदे ने जबसे शिवसेना को तोड़ा है, उद्धव गुट के रसूख में भी काफी कमी आई है. दूसरी तरफ, राजनीतिक तौर पर देखें तो दोनों का एक होना मजबूरी भी है, ताकि विरोधियों को माकूल जवाब देते हुए पुराना दबदबा फिर से हासिल किया जा सके.