मुंबई : ड्राइवर ने अपनी जमीन से बड़े कारोबारी के कब्जे को चुनौती दी और फिर उसे ढहवाया
Mumbai: A driver challenged a big businessman's occupation of his land and then breathed a sigh of relief only after getting it demolished

मुंबई जैसे शहर में अवैध निर्माण एक पुरानी बीमारी है. लेकिन कुछ लोग इस बीमारी से लड़ने का हौसला रखते हैं. जीआर खैरनार और वैभव ठाकुर दो ऐसे नाम हैं जिनकी इन दिनों खूब चर्चा हो रही है. खैरनार बीएमसी के पूर्व उपायुक्त थे जिन्हें ‘डिमोलिशन मैन’ कहा जाता था. लेकिन, दूसरे व्यक्ति वैभव ठाकुर पेशे से एक ड्राइवर हैं.
मुंबई : मुंबई जैसे शहर में अवैध निर्माण एक पुरानी बीमारी है. लेकिन कुछ लोग इस बीमारी से लड़ने का हौसला रखते हैं. जीआर खैरनार और वैभव ठाकुर दो ऐसे नाम हैं जिनकी इन दिनों खूब चर्चा हो रही है. खैरनार बीएमसी के पूर्व उपायुक्त थे जिन्हें ‘डिमोलिशन मैन’ कहा जाता था. लेकिन, दूसरे व्यक्ति वैभव ठाकुर पेशे से एक ड्राइवर हैं. उनकी लड़ाई ने उनको मुंबईवासियों के सामने हीरो बना दिया है. वह ठाणे के रहने वाले हैं और उन्होंने अपनी जमीन से एक बड़े कारोबारी के कब्जे को चुनौती दी और फिर उसे ढहवाकर ही सांस लिया. उनके इस अभियान में केवल उनकी जमीन से ही नहीं मुंबई के सैकड़ों अवैध कब्जे को हटाया गया.
जीआर खैरनार का जन्म 1 जून 1942 को नासिक के पिंपलगांव में हुआ. एक किसान परिवार से आने वाले खैरनार ने 1964 में क्लर्क की नौकरी शुरू की. 1974 में वे बीएमसी में लेखा अधिकारी बने. 1985 में वे चर्चा में आए. तब उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल के बेटे के होटल को तोड़ा. 1988 में बीएमसी के उपायुक्त बने. उन्होंने एक लाख से ज्यादा अवैध निर्माण तोड़े. इनमें अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के 29 बंगले शामिल थे. मंदिर हो या माफिया का निर्माण, खैरनार ने किसी को नहीं बख्शा. उनकी बेबाकी ने उन्हें माफिया और नेताओं का दुश्मन बनाया.
खैरनार ने शरद पवार को घेरा
1993 में खैरनार ने शरद पवार पर अपराधियों को संरक्षण देने का आरोप लगाया. उनकी आत्मकथा ‘एकल झुंज’ में उन्होंने दावा किया कि पवार की कुछ सभाएं दाऊद ने प्रायोजित की थीं. हालांकि यह कभी भी साबित नहीं हुआ. 1994 में उन पर अति-उत्साह का आरोप लगा. एक जांच समिति ने उन्हें निलंबित किया. वर्ष 1995 में हाईकोर्ट ने उनकी बहाली का आदेश दिया. लेकिन नई सरकार ने इसकी अनदेखी की. बीजेपी-शिवसेना ने उनका समर्थन किया. इससे वे कांग्रेस को हराने में मददगार बने. 2002 में उनकी सेवाएं खत्म हुईं. फिर भी उनकी लोकप्रियता ऐसी थी कि 2018 में ऑल्ट बालाजी के शो ‘होम’ में उनके जीवन पर किरदार बना.
दूसरी तरफ वैभव ठाकुर की कहानी है. 45 साल के वैभव एक ड्राइवर हैं. वे ठाणे में रहते हैं. उनकी पुश्तैनी जमीन मढ आइलैंड के एरंगल गांव में है. 2016 में उन्हें अपनी 2400 वर्ग फीट जमीन पर अवैध बंगला दिखा. यह बंगला व्यापारी भरत मेहता की पत्नी रूपा का था. वैभव ने इसके खिलाफ आवाज उठाई. दिन में ड्राइवर की नौकरी करते. रात में सीआरजेड नियम और जमीन कानून पढ़ते. उन्होंने आरटीआई का सहारा लिया. मेहता ने दावा किया कि उनका बंगला 1960 से पहले का है. सीआरजेड नियमों में ऐसी इमारतों को छूट है. लेकिन वैभव ने 2018 में सिटी सर्वे ऑफिस से रिकॉर्ड निकाले. इनसे साबित हुआ कि वहां पहले कोई बंगला नहीं था.
वैभव ने मढ आइलैंड, बांद्रा, विले पार्ले, चेंबूर, गोरेगांव, बोरीवली और मलाड में 865 फर्जी रिकॉर्ड उजागर किए. कई एफआईआर दर्ज कीं. शुरू में पुलिस ने ध्यान नहीं दिया. लेकिन वैभव ने हार नहीं मानी. 2022 में यह मुद्दा विधानसभा में उठा. एक स्वतंत्र समिति बनी. इसने फर्जी दस्तावेजों की पुष्टि की. बीएमसी ने 101 बंगलों को नोटिस भेजा. 28 बंगले तोड़े गए. इनमें वैभव की जमीन पर बना बंगला भी था. मई 2025 में बीएमसी ने मढ में 9 और वर्सोवा में 5 निर्माण तोड़े. अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती को भी नोटिस मिला. खैरनार और वैभव की कहानियां अलग समय की हैं. लेकिन इनमें समानता है. दोनों ने सत्ता और पैसे के सामने हार नहीं मानी. खैरनार ने माफिया और नेताओं को चुनौती दी. वैभव ने अमीरों के अवैध बंगलों को. दोनों ने दिखाया कि साधारण आदमी भी बड़ा बदलाव ला सकता है. मुंबई में अवैध निर्माण आज भी चुनौती है.