मुंबई : साइबर फ्रॉड ने मुंबई को झकझोरा, 5 साल की रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा, हर उम्र का व्यक्ति फंसा
Mumbai: Cyber fraud rocks Mumbai, shocking revelations in 5-year report, people of all ages implicated
मुंबई में साइबर वित्तीय धोखाधड़ी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। साल 2020 से अब तक करीब 20,000 से अधिक मामले दर्ज हो चुके हैं। जिनमें लोगों को कुल 2,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का गवां चुके है। लेकिन इस राशि की रिकवरी ठगी की रकम के मुकाबले बेहद कम हो रही है। हालांकि मुंबई साइबर पुलिस जालसाजों को पकड़ने और ठगी की रकम वसलूने का काम कर रही है।
मुंबई : मुंबई में साइबर वित्तीय धोखाधड़ी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। साल 2020 से अब तक करीब 20,000 से अधिक मामले दर्ज हो चुके हैं। जिनमें लोगों को कुल 2,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का गवां चुके है। लेकिन इस राशि की रिकवरी ठगी की रकम के मुकाबले बेहद कम हो रही है। हालांकि मुंबई साइबर पुलिस जालसाजों को पकड़ने और ठगी की रकम वसलूने का काम कर रही है।
जालसाज व्यवसायी, गृहिणियां, नौकरीपेशा से लेकर रिटायर्ड बुजुर्ग तक हर वर्ग का व्यक्ति इन ठगों के जाल में फंस रहे है। ठग क्रेडिट-डेबिट कार्ड क्लोनिंग, डेटा चोरी, सिम स्वैप, स्किमिंग जैसे परिष्कृत तरीके अपना रहे हैं। लेकिन पीड़ितों की मुश्किल यहीं खत्म नहीं होती दिख रही है। बैंक भी आरबीआई के ‘शून्य दायित्व’ नियमों को नजरअंदाज कर बार-बार क्लेम रिजेक्ट कर देते हैं।
महाराष्ट्र साइबर सेल के आंकड़ों के मुताबिक, केवल क्रेडिट-डेबिट कार्ड, एटीएम फ्रॉड, सिम स्वैप, क्लोनिंग और ओटीपी शेयरिंग से जुड़े 4,132 मामले दर्ज हुए हैं। इनमें कुल नुकसान 161.5 करोड़ रुपये रहा, जबकि पुलिस मात्र 4.8 करोड़ रुपये ही रिकवर कर पाई है। जब तक पीड़ित जानबूझकर संवेदनशील जानकारी साझा नहीं करते, बैंक जिम्मेदार हैं।
आरबीआई के मौजूदा नियम
अगर ग्राहक 3 कार्यदिवस के अंदर धोखाधड़ी की सूचना दे, तो उसकी देयता शून्य है
4-7 दिन में सूचना देने पर अधिकतम 25,000 रुपये तक की देयता
केवल तभी ग्राहक पूरी तरह जिम्मेदार होता है, जब वह जानबूझकर पिन/ओटीपी शेयर करे
बैंक को 10 कार्यदिवस में राशि वापस करनी होती है और 90 दिन में पूरी शिकायत निपटानी होती है
बैंकों के खिलाफ हो कार्रवाई
बैंक अक्सर आरबीआई के शून्य-देयता नियमों की अनदेखी करते हैं। इसके लिए सख्त केवाईसी, तेज कार्ड ब्लॉकिंग, बेहतर समन्वय और सुरक्षा मानदंडों का उल्लंघन करने वाले बैंकों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए, धोखाधड़ी के ये मामले कई तरीकों से जुड़े होते है।
क्रेडिट कार्ड की क्लोनिंग कर के पैसे निकाले
एक उदाहरण साकीनाका निवासी व्यवसायी रोमलजीत कौर मक्कड़ का है। जिनके क्रेडिट कार्ड की क्लोनिंग की गई और उन्हें 2।5 लाख रुपये का चूना लगा। 3 अप्रैल को, जब वह मुंबई स्थित अपने कार्यालय में एक मीटिंग में शामिल होने के लिए गई थी। तब उनके क्रेडिट कार्ड के साथ लखनऊ स्थित एक मर्चेंट मशीन से धोखाधड़ी वाले लेनदेन किए गए। मक्कड़ ने आरोप लगाया कि हो सकता है कि उस दिन खरीदारी के दौरान सीसीटीवी में उनका पिन कैद हो गया होगा।
बैंक डाल रहे बोझ
वर्किंग वीमेन मुमताज खान ने कहा कि ग्राहकों की सुरक्षा करने के बजाय, बैंक अक्सर उन पर ही बोझ डाल देते हैं। जिससे अनगिनत नागरिक धोखाधड़ी होने के बाद भी लंबे समय तक कानूनी नोटिस, वसूली के लिए कॉल और नौकरशाही की उदासीनता से जूझते रहते हैं।
क्या बोलते है साइबर एक्सपर्ट?
साइबर एक्सपर्ट एडवोकेट लूसी मैसी ने बताया कि धोखेबाज लीक और एटीएम स्कीमर के जरिए कार्ड का डाटा चुराते है, ओटीपी शेयर करने के लिए पीड़ितों को जिम्मेदार ठहराना गलत है। क्योंकि इस तरह की धोखाधड़ी आमतौर पर डेटा लीक और कमजोर सत्यापन जैसी व्यवस्थागत खामियों से उपजती है, जिससे बैंकों यानी ग्राहकों पर पूरे पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा की जिम्मेदारी आ जाती है।

