राहुल गांधी की ओर से पत्रकारों का बार-बार मजाक उड़ाना निंदा के योग्य - मुंबई प्रेस क्लब

Rahul Gandhi's repeated mockery of journalists is condemnable - Mumbai Press Club

राहुल गांधी की ओर से पत्रकारों का बार-बार मजाक उड़ाना निंदा के योग्य - मुंबई प्रेस क्लब

मुंबई प्रेस क्लब लगातार पत्रकारों के अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ खड़ा रहा है। चाहे वह सत्तारूढ़ दलों, मीडिया मालिकों या अन्य ताकतों की ओर से किया गया हो। इसलिए हम कामकाजी पत्रकारों के प्रति विपक्ष के नेता राहुल गांधी के अड़ियल रवैये को गंभीर चिंता का विषय मानते हैं। मीडिया और लोकतंत्र को रचनात्मक संवाद और जवाबदेही की जरूरत है न कि खारिज करने वाली टिप्पणियों की।  

मुंबई: महाराष्ट्र के अमरावती में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पत्रकारों पर सत्तारूढ़ सरकार के प्रति आभारी होने और उन्हें अपने 'मालिकों' के गुलाम होने का आरोप लगाया। मुंबई प्रेस क्लब ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। राहुल गांधी की 'गुलाम' वाली टिप्पणी पर चिंता जताते हुए मुंबई प्रेस क्लब ने इस बात पर जोर दिया कि लोकसभा में विपक्ष के नेता को केवल बयान देने के बजाय पत्रकारों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए ठोस उपायों को प्राथमिकता देनी चाहिए। 

मुंबई प्रेस क्लब ने क्या कहा?
प्रेस वक्तव्य में मुंबई प्रेस क्लब ने साफ किया कि यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खुलेआम प्रेस वार्ता से बचने के लिए आलोचना सही है। तो राहुल गांधी की ओर से पत्रकारों का बार-बार मजाक उड़ाना और उनका उपहास करना भी निंदा के योग्य है। क्लब ने कहा कि महाराष्ट्र के अमरावती में एक चुनावी रैली में लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने पत्रकारों के बारे में बहुत ही तीखी टिप्पणी की। उन पर सत्ताधारी शासन के अधीन होने का आरोप लगाया और उन्हें 'अपने मालिकों का गुलाम' करार दिया। पत्रकारों की दुर्दशा के प्रति चिंता के बावजूद उनकी टिप्पणियों में एक प्रकार की संवेदना थी, जिसकी गहन जांच की आवश्यकता है।

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क्लब ने राहुल गांधी से पूछा कि क्या उन्होंने कभी भारत में श्रमजीवी पत्रकारों के सामने आने वाली चुनौतियों और पत्रकारिता की समग्र स्थिति के मूल कारणों पर विचार किया है। मुंबई प्रेस क्लब ने कहा कि आज पत्रकारों की खराब स्थिति मुख्य रूप से अनियंत्रित संविदाकरण से उत्पन्न हुई है। जो आंशिक रूप से 1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार की ओर से शुरू की गई नवउदारवादी नीतियों से प्रेरित थी।

पत्रकारों ने यूनियन बनाने और बेहतर कामकाजी परिस्थितियों सहित महत्वपूर्ण अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी और उन्हें हासिल किया। हालांकि संविदाकरण ने एकाधिकार वाले मीडिया घरानों को पत्रकारों को मनमाने ढंग से नौकरी से निकालने की अनुमति दी। इससे यूनियन कमजोर हुई और पत्रकार असुरक्षित हो गए। आगे कहा गया कि अगर राहुल गांधी वास्तव में पत्रकारों की दुर्दशा को संबोधित करना चाहते हैं, तो शायद उन्हें अपनी आलोचना मीडिया मालिकों और उद्योग के भीतर संरचनात्मक मुद्दों की ओर मोड़नी चाहिए। बर्खास्तगी के सदैव मौजूद खतरे तथा बेरोजगार और अल्परोजगार वाले पत्रकारों की अधिक आपूर्ति के कारण यह अपेक्षा करना अवास्तविक है कि कार्यरत पत्रकार व्यक्तिगत जोखिम उठाकर व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह करेंगे।

मुंबई प्रेस क्लब ने आगे कहा कि हालांकि हम मीडिया के प्रति सरकार की तानाशाही प्रवृत्तियों से उत्पन्न चुनौतियों को स्वीकार करते हैं, लेकिन राहुल गांधी की ओर से पत्रकारों को बार-बार निशाना बनाना भी उतना ही चिंताजनक है। उनकी बयानबाजी से यह चिंता पैदा होती है कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में लौटती है तो वह प्रेस से किस तरह पेश आएगी। 

मुंबई प्रेस क्लब लगातार पत्रकारों के अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ खड़ा रहा है। चाहे वह सत्तारूढ़ दलों, मीडिया मालिकों या अन्य ताकतों की ओर से किया गया हो। इसलिए हम कामकाजी पत्रकारों के प्रति विपक्ष के नेता राहुल गांधी के अड़ियल रवैये को गंभीर चिंता का विषय मानते हैं। मीडिया और लोकतंत्र को रचनात्मक संवाद और जवाबदेही की जरूरत है न कि खारिज करने वाली टिप्पणियों की।  

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