सफेद हाथी साबित हो रही है मोनो रेल, यात्रियों की संख्या में कमी
Monorail is proving to be a white elephant, the number of passengers is decreasing

मुंबई, महानगर में लगातार बढ़ती जनसंख्या और ट्रैफिक की समस्या और प्रदूषण मुक्त यातायात को ध्यान में रखकर मोनो रेल परियोजना लगाई गई थी। वर्ष २००९ में पहले चरण में वडाला से चेंबूर और दूसरे चरण में संत गाडगे महाराज चौक से वडाला तक कुल १९ किलोमीटर की मोनोरेल सेवा मुंबई की जनता के लिए वर्ष २०१४ में पूरी तरह चालू कर दी गई थी।
मुंबई, महानगर में लगातार बढ़ती जनसंख्या और ट्रैफिक की समस्या और प्रदूषण मुक्त यातायात को ध्यान में रखकर मोनो रेल परियोजना लगाई गई थी। वर्ष २००९ में पहले चरण में वडाला से चेंबूर और दूसरे चरण में संत गाडगे महाराज चौक से वडाला तक कुल १९ किलोमीटर की मोनोरेल सेवा मुंबई की जनता के लिए वर्ष २०१४ में पूरी तरह चालू कर दी गई थी। आज १० साल बाद भी मोनो रेल एक सफेद हाथी ही साबित हो रही है क्योंकि इन दस वर्षों में मोनो रेल कभी भी फायदे में नहीं आ पाई। इसका मुख्य कारण मोनो रेल से सफर करने वाले यात्रियों की संख्या में कमी रही है।
बता दें कि मोनो रेल के पास रेक की कुल संख्या इन १० वर्षों में आठ से ज्यादा नहीं बढ़ पाई है, जिसके कारण मोनो रेल की फ्रीक्वेंसी बहुत ही कम है। पहले जहां १८ मिनट पर एक मोनो रेल उपलब्ध होती थी, वहीं अब जाकर दो महीने पहले उसे घटाकर सोमवार से लेकर शुक्रवार तक के दिनों में १५ मिनट दिया गया है। शनिवार और रविवार को यह टाइम अभी भी १८ मिनट ही है। मोनो रेल में कुछ वरिष्ठ अधिकारियों को छोड़कर देखभाल से लेकर मोनो रेल पायलट सहित सभी नियुक्तियां तीन प्राइवेट एजेंसियां करती हैं। मोनो रेल ने रियायती दर में मासिक पास योजना या कोई भी अन्य योजना लागू नहीं की है। मोनो रेल के एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मोनो रेल में प्रवासियों को कम संख्या का सबसे बड़ा कारण फ्रीक्वेंसी की कमी होना और स्टेशन के पास से यातायात के लिए अन्य सस्ते वैकल्पिक साधनों का उपलब्ध न होना है। लेकिन सरकार की उदासीनता के कारण मोनो रेल का जैसा उपयोग होना चाहिए वैसा नहीं हो पा रहा है। कनेक्टिविटी बेहतर करने के लिए मोनो रेल को महालक्ष्मी स्टेशन से जोड़ने का प्रस्ताव पिछले साल सरकार ने पास जरूर कर दिया है लेकिन अभी तक उस पर कार्रवाई शुरु नहीं हो पाई है। दस साल होने के बाद आज भी मोनो रेल की आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ।
मोनो रेल की सुरक्षा को लेकर भी सवाल उठ चुके है। एक बार मोनो रेल में चलते वक्त आग लग चुकी है। कई बार ऐसा हुआ कि मोनोरेल बीच रास्ते में ही अटक गई। ऊंचाई पर फंसे मुसाफिरों को निकालने के लिए फायरब्रिगेड की मदद लेनी प़ड़ी। आए दिन तकनीकी खराबी की वजह से मोनो रेल बंद हो जाती है।
पूरी तरह से परिचालन होने के बावजूद आज दस साल बाद भी मोनो रेल घाटे में चल रही है उसका मुख्य कारण है मोनो रेल के स्टेशनों और आम लोगों के बीच अपर्याप्त कनेक्टिविटी। मोनो रेल का लोअर परेल स्टेशन ही एकमात्र ऐसा स्टेशन है, जिसके करीब करी रोड स्टेशन और लोअर परेल स्टेशन है और विभिन्न कार्यालय होने के कारण यहीं पर सबसे ज्यादा भीड़ रहती है। बाकी अन्य स्टेशन पर बहुत कम यात्री रहते हैं। बेहतर कनेक्टिविटी का न होना एक बहुत बड़ा कारण है। मुंबई जैसे शहर में जहां लोगों का समय बहुमूल्य होता है, ऐसे में १५ से बीस मिनट तक इंतजार करके मोनो रेल में सफर करना लोगों को समय की बर्बादी लगती है। यही कारण है कि लोगों की पहली पसंद मोनो रेल नहीं बन पा रही है। मेट्रो रेल हो या मुंबई की लोकल ट्रेन, मुंबई की जनता के लिए परिवहन के एक सस्ते और सुगम साधन के रूप में उपलब्ध है। लेकिन यातायात के इन साधनों के मुकाबले मोनो रेल परिवहन के लिए एक महंगा साधन साबित हो रही है। २००९ से मोनो रेल चालू होने के बावजूद आज तक मोनो कार्ड नहीं लॉन्च किया गया और न ही आम जनता को आकर्षित करने के कोई योजना लाई गई है।