मांगी थी रेप के बाद जन्मे बच्चे के डीएनए जांच की मांग... हाई कोर्ट ने किया इनकार

Had asked for DNA test of child born after rape... High Court refused

मांगी थी रेप के बाद जन्मे बच्चे के डीएनए जांच की मांग... हाई कोर्ट ने किया इनकार

दो साल 10 माह से जेल में बंद आरोपी के खिलाफ साल 2020 में आईपीसी की धारा 376(2 एन) और पॉक्सो कानून की धारा 4,8,12 के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया गया था। सुनवाई के दौरान आरोपी के वकील ने कहा कि पुलिस को बच्चे के डीएनए जांच के लिए पर्याप्त समय दिया जा चुका है। इसके बावजूद टेस्ट कराने में वह नाकाम रही है। उम्र की जांच के लिए पीड़िता का ऑसिफिकेशन टेस्ट हुआ था, जिसमें उसकी उम्र 17 से 18 वर्ष बताई गई है।

मुंबई: मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि अडॉप्शन में दिए गए बच्चे का डीएनए टेस्ट कराना उसके हित में नहीं है। कोर्ट ने यह बात रेप से जुड़े मामले में एक आरोपी को जमानत देते हुए कही है। नाबालिग पीड़िता (17 वर्ष) ने बच्चे को जन्म देने के बाद एक गैर सरकारी संस्था को सौंप दिया था। इस संस्था से बच्चे को एक दंपती ने अडॉप्ट कर लिया। अब संस्था पुलिस को उस बच्चे को गोद लेनेवाले अभिभावकों की जानकारी नहीं दे रही है।

लिहाजा पुलिस डीएनए टेस्ट के लिए बच्चे का सैंपल नहीं ले पाई है। जस्टिस जी. ए. सानप ने पुलिस की मुश्किल को तर्कसंगत मानते हुए कहा कि अडॉप्शन में सौंपे गए बच्चे का डीएनए टेस्ट उसके हित में नहीं हो सकता है। पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने डीएनए टेस्ट के संबंध में उठाए गए कदमों पर पुलिस को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था। पुलिस ने डीएनए सैंपल को हासिल करने से जुड़ी कठिनाई का खुलासा किया था।

दो साल 10 माह से जेल में बंद आरोपी के खिलाफ साल 2020 में आईपीसी की धारा 376(2 एन) और पॉक्सो कानून की धारा 4,8,12 के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया गया था। सुनवाई के दौरान आरोपी के वकील ने कहा कि पुलिस को बच्चे के डीएनए जांच के लिए पर्याप्त समय दिया जा चुका है। इसके बावजूद टेस्ट कराने में वह नाकाम रही है। उम्र की जांच के लिए पीड़िता का ऑसिफिकेशन टेस्ट हुआ था, जिसमें उसकी उम्र 17 से 18 वर्ष बताई गई है। आरोपी और पीड़िता के बीच रजामंदी से संबंध बने थे। ऑसिफिकेशन टेस्ट में उम्र को लेकर हमेशा दो साल का अंतर रहता है, ऐसे में आरोपी की जेल में लंबी अवधि को देखते हुए उसे जमानत पर रिहा किया जाए।

सरकारी वकील ने जमानत अर्जी का विरोध करते हुए कहा कि वारदात के समय विक्टिम नाबालिग थी। आरोपी ने शादी का वादा कर जबरन संबंध बनाए। आरोपी को जमानत दी गई, तो वह विक्टिम पर दबाव बना सकता है। इस पर जस्टिस सानप ने कहा कि अब तक आरोपी के खिलाफ आरोप तय नहीं किए गए हैं। भविष्य में भी ट्रायल पूरी होने की संभावना धूमिल नजर आ रही है। ऐसे में आरोपी की जेल में लंबी अवधि और केस की समग्र स्थिति को देखते हुए उसे 25 हजार रुपये के बॉन्ड और श्योरेटी पर सशर्त जमानत दी जाती है।

आरोपी ने अपनी जमानत याचिका में दावा किया था कि वैसे तो पीड़िता की उम्र 17 वर्ष है और उनके बीच संबंध सहमति से बने थे। पुलिस में दर्ज शिकायत के अनुसार आरोपी ने लड़की के साथ जबरदस्ती संबंध बनाए थे,जिससे वह गर्भवती हो गई थी। आरोपी को 2020 में ओशीवारा पुलिस ने दुष्कर्म और यौन उत्पीड़न के आरोप में भारतीय दंड संहिता और यौन अपराधों से बच्चों को संरक्षण (पोस्को) अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया था। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि वह इस स्तर पर आरोपी की इस दलील को स्वीकार नहीं कर सकता कि पीड़िता ने संबंध के लिए सहमति दी थी, लेकिन चूंकि आरोपी 2020 में गिरफ्तारी के बाद से जेल में है इसलिए जमानत दी जानी चाहिए। उच्च न्यायालय ने कहा कि यद्यपि आरोपपत्र दाखिल किया गया लेकिन विशेष अदालत ने आरोप तय नहीं किए हैं।

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