अजित पवार ने जैसे ही प्रदेश के एनसीपी संगठन में काम करने की इच्छा जताई, वरिष्ठ नेता छगन भुजबल ने भी अपनी टोपी रिंग में उछाल दी है। उन्होंने कहा कि प्रदेशाध्यक्ष पद पर किसी पिछड़ी जाति के व्यक्ति को बैठाया जाना चाहिए। वह तर्क दे रहे हैं कि कांग्रेस ने नाना पटोले और बीजेपी ने चंद्रशेखर बावनकुले जैसा पिछड़ा प्रदेशाध्यक्ष चुना है। जाहिर है कि वह खुद को प्रदेशाध्यक्ष के तौर पर प्रस्तुत कर रहे हैं। वैसे, 25 साल पुरानी एनसीपी में प्रदेशाध्यक्ष पद के बहुत इच्छुक रहे हों, ऐसा इतिहास नहीं रहा है। इससे पहले पार्टी नेताओं ने इसकी तुलना में महाराष्ट्र के मंत्री पद को ज्यादा तवज्जो दी है। इस पद पर बैठे अधिकांश लोगों ने इस शर्त पर यह पद लेना पसंद किया है कि साथ-साथ उनका मंत्री पद कायम रहे। फिर अब क्या बदल गया?After Ajit Pawar, Chhagan Bhujbal stakes claim for state NCP president's post....

एनसीपी के क्षत्रप यह समझते हैं कि अगले साल होने वाले लोकसभा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में टिकट बांटने में इस पद पर बैठे व्यक्ति की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। 1999 में जब कांग्रेस तोड़कर शरद पवार ने एनसीपी का गठन किया था, तब छगन भुजबल को प्रदेशाध्यक्ष चुना गया था। तुरंत चुनाव हुए और एनसीपी महाराष्ट्र की सत्ता में कांग्रेस के साथ साझेदार हो गई। भुजबल 4 महीने बाद ही प्रदेशाध्यक्ष पद छोड़कर राज्य के उप मुख्यमंत्री बन गए थे....After Ajit Pawar, Chhagan Bhujbal stakes claim for state NCP president's post....
भुजबल का तो पहले ही दिन से अजित पवार से पंगा रहा है। 1999 में कांग्रेस-एनसीपी सरकार बनने पर विधायकों
के बीच मतदान कराना पड़ा था कि दोनों में कौन उप मुख्यमंत्री बनेगा। तब भुजबल का पलड़ा भारी निकला। इधर, 25 साल में राजनीति बदल गई है। भुजबल ढाई साल जेल में रहे और बाहर निकलने के बाद भी नासिक की स्थानीय राजनीति के बाहर ज्यादा सक्रिय नजर नहीं आए हैं। कभी भुजबल की आवाज पार्टी में गूंजा करती थी, अब अजित पवार की दहाड़ चलती है...After Ajit Pawar, Chhagan Bhujbal stakes claim for state NCP president's post....
भुजबल और मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष जयंत पाटील को छोड़कर पार्टी के ज्यादातर सरदारों ने अजित पवार का नेतृत्व स्वीकार कर लिया है। सुनील तटकरे से लेकर दिलीप वलसे पाटील जैसे धाकड़ प्रदेशाध्यक्षों को उनकी माननी पड़ी है। शरद पवार ने पिछले दिनों रिटायरमेंट की घोषणा की थी, तो अजित ने इसका विरोध करने वालों को लगभग डपटकर चुप कर दिया था। जयंत पाटील और भुजबल खुलकर ऐतराज करने वालों में शामिल दिखाई दिए। इस बार अजित ने संगठन में काम करने का नया पत्ता फेंका है, तो भुजबल चुप कैसे रह जाते?
भुजबल ने पिछड़ी राजनीति का जो जवाबी पत्ता खेला है, उसे मराठा वर्चस्व वाली एनसीपी के लिए काट पाना आसान नहीं होगा। उनकी दलील यह है कि जब विधानसभा में विपक्ष का नेता (अजित पवार) मराठा है, तो प्रदेशाध्यक्ष गैर मराठा होना चाहिए। क्या वह खुद के लिए प्रचार कर रहे हैं, यह पूछे जाने पर भुजबल यह कह रहे हैं कि सुनील तटकरे, जितेंद्र आव्हाड जैसे दूसरे नेता हैं, इनमें से भी प्रदेशाध्यक्ष चुना जा सकता है। पिछड़ा न भी हो, तो किसी दूसरे कमजोर समाज का प्रदेशाध्यक्ष चुना जा सकता है। भुजबल यह कह नहीं रहे हैं, पर मतलब यही है कि अजित कहीं विपक्ष का नेता पद प्रदेशाध्यक्ष बनने के लिए छोड़ते हैं, तो नेता विपक्ष का पद पिछड़े नेता यानी भुजबल के हिस्से आ जाए...After Ajit Pawar, Chhagan Bhujbal stakes claim for state NCP president's post....
कागज पर यह समीकरण बहुत ही मजबूत नजर आता हो, मगर विधायक दल और संगठन के विभिन्न दिशा में दौड़ रहे इतने प्रबल घोड़ों को एक तालाब में पानी पीने के लिए कौन ला पाएगा? शरद पवार के शारीरिक तौर पर कमजोर पड़ने पर इस द्वंद्व को संभालना लगभग नामुमकिन हो जाएगा। 2024 में एनसीपी के लिए कहीं महाराष्ट्र में सत्ता के दरवाजे खुलने की संभावना बनी, तो इस शीत युद्ध को महायुद्ध बनने में देर नहीं लगेगी...After Ajit Pawar, Chhagan Bhujbal stakes claim for state NCP president's post....