पालघर/ भारी बैग का दबाव... किताबों के बीच सिसकते बचपन!
Palghar / The pressure of heavy bags... Childhood sobbing between books!
किताबों के बीच सिसकते बचपन ने शिक्षा की बुनियाद को हिलाकर रख दिया है। एक छोटे बच्चे के लिए दस-बारह किताबें रोज स्कूल ले जाना और उन्हें पढ़ना कठिन होता है, इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। अब हालात ऐसे हो गए हैं कि भारी बैग के दबाव के कारण बच्चे गर्दन, पीठ दर्द का तो शिकार हो ही रहे हैं, साथ ही बस्ते के बढ़ते अनावश्यक बोझ से बच्चे मानसिक रूप से कुंठित भी हो रहे हैं।
पालघर : किताबों के बीच सिसकते बचपन ने शिक्षा की बुनियाद को हिलाकर रख दिया है। एक छोटे बच्चे के लिए दस-बारह किताबें रोज स्कूल ले जाना और उन्हें पढ़ना कठिन होता है, इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। अब हालात ऐसे हो गए हैं कि भारी बैग के दबाव के कारण बच्चे गर्दन, पीठ दर्द का तो शिकार हो ही रहे हैं, साथ ही बस्ते के बढ़ते अनावश्यक बोझ से बच्चे मानसिक रूप से कुंठित भी हो रहे हैं।
शिक्षा एवं स्मार्ट स्कूलों का दावा करनेवाले प्राइवेट स्कूल, नर्सरी एवं प्राइमरी कक्षाओं में बस्ते के वजन को लेकर जारी नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाते दिख रहे हैं। छोटी कक्षाओं के बच्चों के बस्ते (बैग) का वजन भी बड़ी कक्षाओं के बच्चों से भारी है। इससे अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई करनेवाले बच्चे बोझ की मार झेल रहे हैं।
स्कूल बैग का बढ़ता बोझ निरंतर चिंता का विषय बना हुआ है। भारी बैग की वजह से बच्चों के कंधों पर जरूरत से अधिक दबाव पड़ता है। बच्चों के परिजनों का कहना है कि केजी के बच्चे के बैग का वजन २ किलो तक होता है, जबकि दूसरी क्लास तक पहुंचते-पहुंचते यह बढ़कर ४ किलो हो जाता है। पांचवीं में स्कूल बैग का वजन ५ से ७ किलो तक हो जाता है। पालघर जिले में प्राइमरी में करीब दो लाख से ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं।
प्राइवेट स्कूलों में मासूमों पर बस्ते का भार कम करने के लिए न तो शिक्षा विभाग किसी तरह की लगाम लगा रहा है न तो सरकार शिकंजा कस रही है। प्राइवेट स्कूलों की ओर से छोटे बच्चों के लिए अलग-अलग तरह की पुस्तकें, कॉपियां, ड्रॉइंग बुक आदि लाद देते हैं। जिससे भारी भरकम बस्तों के बोझ तले बचपन दब रहा है।
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