वैक्सीन का तीसरा डोज ही होगा बूस्टर जानिए क्‍या कह रहे हैं डॉक्‍टर

वैक्सीन का तीसरा डोज ही होगा बूस्टर जानिए क्‍या कह रहे हैं डॉक्‍टर

नई दिल्‍ली भारत में अगले हफ्ते से हेल्‍थकेयर स्‍पेशलिस्‍ट्स को ‘प्रिकॉशनरी डोज’ लगाना शुरू किया जाएगा। इनमें से कुछ ने सरकार के उसी वैक्‍सीन को तीसरी डोज की तरह इस्‍तेमाल करने के फैसले पर चिंता जताई है। दिल्‍ली के फोर्टिस अस्‍पताल के चेयरमैन, अनूप मिश्रा ने कहा, ‘ऐंटीबॉडी निर्माण बढ़ाने के लिए अलग वैक्‍सीन का इस्‍तेमाल करना शायद ज्‍यादा बुद्धिमानी भरा फैसला होता।’ हालांकि उन्‍होंने कहा कि इस संबंध में और डेटा की जरूरत है

सरकार ने तय किया है कि हेल्‍थकेयर वर्कर्स, फ्रंटलाइन वर्कर्स और को-मॉर्बिडिटीज से ग्रस्‍त 60 साल से ज्‍यादा उम्र के लोगों को प्रिकॉशनरी डोज दी जाएगी। बुधवार को सरकार ने कहा कि इसके लिए उसी वैक्‍सीन का इस्‍तेमाल होगा जो उन्‍हें पहले दी जा चुकी है।

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मैक्‍स हेल्‍थकेयर में एंडोक्रिनोलॉजी एंड डायबिटीज विभाग के चेयरमैन, अम्‍बरीश मित्‍तल ने कहा कि सरकार ने ‘प्‍ले सेफ’ की रणनीति के तहत फैसला किया है क्‍योंकि तीसरी डोज के लिए वैक्‍सीन को मिक्‍स करने का डेटा उपलब्‍ध नहीं है। हालांकि उन्‍होंने कहा, ‘सबसे अच्‍छा तो यही होता कि जैसी किसी वैक्‍सीन को थर्ड डोज की तरह यूज करते। यह अप्रूव्‍ड है मगर अभी उपलब्‍ध नहीं है। और RNA टीकों तक हमारी पहुंच नहीं है।’
3 जनवरी को फैसले से पहले टीकाकरण पर राष्‍ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह की बैठकों में बूस्‍टर पर चर्चा हुई। एक सदस्‍य ने कहा कि फैसला इस तथ्‍य के आधार पर हुआ कि अगर वैक्‍सीन को मिक्‍स किया जाए तो रिएक्‍टोजेनेसिटी बढ़ जाती है। रिएक्‍टोजेनेसिटी मतलब वैक्‍सीनेशन के बाद होने वाले रिएंक्‍शंस।

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मगर एक्‍सपर्ट्स की राय जुदा है। कोलकाता के जीडी हॉस्पिटल एंड डायबिटीज इंस्टिट्यूट में सीनियर कंसल्‍टेंट एंडोक्रिनोलॉजिस्‍ट एके सिंह ने कहा, ‘भारत में उत्‍पादित किए जा रहे उपलब्‍ध टीकों में से बूस्‍टर डोज के रूप में बेस्‍ट चॉइस होती, वही वैक्‍सीन नहीं।’
कुछ हेल्‍थ एक्‍सपर्ट्स ने अस्‍पताल की हालिया स्‍टडी का हवाला दिया। इसमें पाया गया कि वैक्‍सीन मिक्‍स करने से ज्‍यादा ऐंटीबॉडीज बनती हैं और यह सुरक्षित भी है। हालांकि कई एक्‍सपर्ट्स का मानना है कि इस संबंध में और डेटा की जरूरत है। टॉप वायरलॉजिस्‍ट गगनदीप कांग का ट्वीट है कि स्‍टडी बेहद छोटी थी, इसलिए सेफ्टी पर कुछ भी कहना मुश्किल है। मगर मिक्‍स डोज से उतनी ही इम्‍युनोजेनेसिटी मिलती है। और डेटा व आंकड़ों से मदद मिलेगी। कई देश डोज मिक्‍स कर रहे हैं और कुछ उसी वैक्‍सीन से बूस्‍ट कर रहे हैं।’

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वरिष्‍ठ महामारीविद गिरधर बाबू ने कहा कि भारत में अलग-अलग वैक्‍सीन को लेकर सबूत की गैरमौजूदगी में सरकार का फैसला सही है, कम से कम कोविशील्‍ड के केस में। उन्‍होंने कहा, ‘UK के सबूत बताते हैं कि एस्‍ट्राजेनेका की दो डोज भी अस्‍पताल में भर्ती होने और मौत से बचाने में कारगर हैं। मैंने कोवैक्सिन का डेटा नहीं देखा है इसलिए उसपर टिप्‍पणी नहीं कर सकता।’ इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की केरल यूनिट के वाइस-चेयरमैन, डॉ राजीव जयदेवन ने कहा कि इन टीकों पर स्‍टडीज की जरूरत है।

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