पालघर में स्थानीय अदालत का बड़ा फैसला... संदेह के लाभ में दुष्कर्म और मर्डर केस के आरोपी को किया बरी

Big decision of local court in Palghar... accused of rape and murder case acquitted on benefit of doubt

पालघर में  स्थानीय अदालत का बड़ा फैसला... संदेह के लाभ में दुष्कर्म और मर्डर केस के आरोपी को किया बरी

पालघर में एक 33 वर्षीय दुष्कर्म और मर्डर करने के आरोपी को स्थानीय अदालत ने संदेह के लाभ में बरी कर दिया है। आरोपी साल 2016 में जेल में बंद था लेकिन  पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में अदालत ने उसे रिहा करने का आदेश दे दिया। हालांकि, अदालत ने उसे पुलिस को झूठी सूचना देने के लिए दोषी ठहराया और उसे छह महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई।

महाराष्ट्र : पालघर में एक 33 वर्षीय दुष्कर्म और मर्डर करने के आरोपी को स्थानीय अदालत ने संदेह के लाभ में बरी कर दिया है। आरोपी साल 2016 में जेल में बंद था लेकिन  पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में अदालत ने उसे रिहा करने का आदेश दे दिया। हालांकि, अदालत ने उसे पुलिस को झूठी सूचना देने के लिए दोषी ठहराया और उसे छह महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई। लेकिन उसने पिछले सात साल जेल में बिताए हैं, इसलिए उन्हें और कैद में रहने की जरूरत नहीं है।

अभियोजन पक्ष की ओर से पेश अतिरिक्त सरकारी वकील राखी पांडे ने अदालत को बताया कि आरोपी और पीड़ित महिला, जो तब 18 साल की थी, के बीच संबंध थे। महिला उससे शादी करने के लिए कह रही थी, हालांकि वह पहले से ही शादीशुदा था और उसके बच्चे भी थे।

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अभियोजन पक्ष ने कहा कि 26 मार्च 2016 को वह महिला को सुनसान जगह पर ले गया और उसके साथ दुष्कर्म किया। घटना के बाद पीड़िता पास के जंगल में चली गई और बाद में मृत पाई गई। अगले दिन मालवकर ने वाडा थाने के कर्मियों को बताया कि पीड़िता ने पेड़ से लटक कर आत्महत्या कर ली है।

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पुलिस ने महिला के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और अपराध स्थल का निरीक्षण किया। अभियोजन पक्ष ने कहा कि उन्होंने उस आदमी के संस्करण पर संदेह जताया कि पीड़िता ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली थी, क्योंकि उन्होंने पाया कि शव को नीचे लाया गया था, लेकिन फांसी के लिए इस्तेमाल किया गया कपड़ा अभी भी पेड़ से बंधा हुआ था।

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पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में बाद में पता चला कि महिला की मौत गला घोंटने से हुई थी, जिसके बाद आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया और उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (बलात्कार), 302 (हत्या) और 177 (गलत जानकारी देने) के तहत मामला दर्ज किया गया। स्थानीय अदालत ने उन्हें जेल भेज दिया था। लेकिन सात साल की सुनवाई में अभियोजन पक्ष पर्याप्त सबूत नहीं जुटा सकी।

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अभियोजन पक्ष ने यह साबित तो कर दिया कि महिला की मौत हत्या थी। लेकिन यह साबित करने में नाकाम रहा कि आरोपी ने उसके साथ दुष्कर्म किया और उसकी हत्या कर दी। अभियोजन पक्ष ने साबित किया है कि आरोपी ने पुलिस अधिकारी को उसकी मौत के बारे में गलत जानकारी दी थी।