विधायकों को मंत्री पद में कोई दिलचस्पी नहीं... विधानसभा चुनाव पर कर रहे फोकस

MLAs are not interested in ministerial posts... focusing on assembly elections

विधायकों को मंत्री पद में कोई दिलचस्पी नहीं... विधानसभा चुनाव पर कर रहे फोकस

लोकसभा चुनाव में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा है। चुनाव से पहले बीजेपी के नेता बड़े-बड़े दावे कर रहे थे, लेकिन किसी को अनुमान नहीं था कि महाराष्ट्र में उनकी पार्टी का माहौल इतना खराब है। जिन सीटों पर बीजेपी अपनी जीत का दम भर रही थी, उन सीटों पर भी बीजेपी बुरी तरह से हार गई। कई सारे केंद्रीय मंत्रियों के विकेट गिर गए। यहां तक कि उनकी पार्टी के बड़े नेता और सरकार के वन मंत्री सुधीर मुनगंटीवार को भी पराजय का मुंह देखना पड़ा है।

मुंबई : लोकसभा चुनाव हारने के बाद बीजेपी एक बार फिर अपने विधायक और सहयोगी दलों को कैबिनेट विस्तार का लॉलीपॉप दे रही है, लेकिन अब विधायकों को मंत्री पद में कोई दिलचस्पी नहीं रही। दरअसल, अब वे अपना पूरा ध्यान महज 3-4 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनावों पर देना चाहते हैं। विधायकों का कहना है कि विधायकी बची रहेगी, तो मंत्री भी बनेंगे, लेकिन विधायक नहीं रहे तो कहीं के नहीं रहेंगे। पार्टी भी हारने वालों को नहीं पूछती है।

लोकसभा चुनाव में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा है। चुनाव से पहले बीजेपी के नेता बड़े-बड़े दावे कर रहे थे, लेकिन किसी को अनुमान नहीं था कि महाराष्ट्र में उनकी पार्टी का माहौल इतना खराब है। जिन सीटों पर बीजेपी अपनी जीत का दम भर रही थी, उन सीटों पर भी बीजेपी बुरी तरह से हार गई। कई सारे केंद्रीय मंत्रियों के विकेट गिर गए। यहां तक कि उनकी पार्टी के बड़े नेता और सरकार के वन मंत्री सुधीर मुनगंटीवार को भी पराजय का मुंह देखना पड़ा है।

लोकसभा चुनाव में बीजेपी 23 से सीटों से 9 पर आ गिरी। पार्टी के नेता कहने लगे हैं कि उनसे अच्छा प्रदर्शन को शिंदे सेना का रहा। बीजेपी ने अपनी गलतियां नहीं सुधारी, तो लोकसभा जैसे हालात होने में देर नहीं लगेगी। लोकसभा चुनाव में मिली हार ने बीजेपी, अजित पवार और शिंदे सेना के विधायकों के छक्के छुड़ा दिए हैं, इसलिए अब वे अपने चुनाव क्षेत्र में रहकर अपने मतदाताओं से संपर्क में रहना चाहते हैं। वे उनकी नाराजगी दूर कर अगली बार विधानसभा में पहुंचने के रास्ते तलाश रहे हैं। मंत्री बन जाने पर उन पर बंधन आ जाएंगे और अपने विधानसभा पर वे ध्यान नहीं दे पाएंगे, इसलिए उन्हें मंत्री बनने की बजाय विधायक रहते हुए काम करेंगे।

बीजेपी बिगड़े गणित को ठीक करने के लिए कई तरह के कदम उठा सकती है। उसमें मंत्रिमंडल विस्तार प्रमुख है। पार्टी का मानना है कि मंत्रिमंडल विस्तार कर वह जाति समीकरण को साध लेगी। उसे यह दिखाने के लिए रहेगा कि उसने सरकार में सभी को प्रतिनिधित्व दिया है। इसके अलावा बजट में भी ऐसी कई सारी लॉलीपॉप योजनाओं की घोषणा कर सकती है, जिससे कि वह मतदाताओं को रिझा सके।

मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन में उत्तर भारतीय समाज बीजेपी और शिंदे सेना से दूर हुए हैं। ऐसे ही रहा तो आने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी और भी नुकसान हो सकता है, इसलिए बीजेपी को उत्तर भारतीयों को साथ रखना जरूरी है। वैसे बीजेपी के उत्तर भारतीय नेता कहते हैं कि पार्टी देती तो कुछ नहीं, लेकिन पार्टी के काम में साथ लेती है।

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समाज का एक भी प्रतिनिधि शिंदे-फडणवीस सरकार में नहीं है। दूसरी ओर कांग्रेस लगातार उत्तर भारतीयों पर डोरे डाल रही है। उन्हें अपनी तरफ खींचने के लिए पूर्व कैबिनेट मंत्री नसीम खान से लेकर मुंबई प्रदेश के पार्टी के कोषाध्यक्ष संदीप शुक्ल, युवा नेता अवनीश सिंह, अखिलेश यादव, सुरेशचंद्र राजहंस, सूरज सिंह ठाकुर जैसे युवा नेताओं को सामने ला रही है।

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