मां के साथ बुरा व्यवहार'; हाई कोर्ट ने बेटे को घर से बाहर का रास्ता दिखाया और गुजारा-भत्ता भी देने को कहा
The High Court showed the son the way out of the house and also asked him to pay maintenance.
मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट ने मां के साथ बुरा व्यवहार करनेवाले बेटे को घर से बाहर का रास्ता दिखाया है। कोर्ट ने साफ किया है कि मां के पास रहने के लिए कोई दूसरा घर नहीं है। वह फ्लैट की मालिक है। उसे यह तय करने का हक है कि उसके साथ कौन रहेगा। लिहाजा बेटा परेल में स्थित इमारत को खाली कर दे।
मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट ने मां के साथ बुरा व्यवहार करनेवाले बेटे को घर से बाहर का रास्ता दिखाया है। कोर्ट ने साफ किया है कि मां के पास रहने के लिए कोई दूसरा घर नहीं है। वह फ्लैट की मालिक है। उसे यह तय करने का हक है कि उसके साथ कौन रहेगा। लिहाजा बेटा परेल में स्थित इमारत को खाली कर दे। बेटे के पक्ष में जो वसीयत है, उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। जब तक मां जिंदा है, उसके जीवनकाल में बेटे को वसीयत का कोई लाभ नहीं दिया जाएगा।
अदालत ने बेटे की याचिका को खारिज कर दिया। अपने बेटे के आचरण से परेशान मां ने पहले सीनियर सिटिजन ट्रिब्यूनल में बेटे के खिलाफ शिकायत की थी। 21 जून 2022 को ट्रिब्यूनल ने मां के हक में फैसला सुनाया और बेटे को मां का फ्लैट खाली करने के साथ ही प्रति माह 1500 रुपये गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया था। ट्रिब्यूनल ने बुजुर्ग मां के दो अन्य बेटों को भी भरण-पोषण की इतनी ही रकम देने का निर्देश दिया, जबकि बेटी को 250 रुपये देने को कहा था।
ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ बेटे ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका के मुताबिक, जी.डी. आंबेकर रोड स्थित परेल की चॉल का रीडिवेलपमेंट होने पर मां को एक फ्लैट मिला है। मां ने सितंबर 2011 को जो वसीयत बनाई थी, उसमें चॉल का घर उसके बेटे के नाम पर स्थानांतरित करने की बात कही गई थी, जबकि दो अन्य भाइयों को इसके बदले पैसे दिए गए थे।
वर्तमान में याचिकाकर्ता बेटे के पास परिवार के साथ रहने के लिए कोई दूसरा घर नहीं है। उसने शाहपुर का फ्लैट कोरोना काल में बेच दिया था। उसकी मां की देखरेख की जिम्मेदारी उसी पर है। भविष्य में भी मां की देखभाल करने का दावा किया था। ट्रिब्यूनल का आदेश दोषपूर्ण है। इसलिए इसे रद्द कर दिया जाए।
जस्टिस एसवी मारने ने बेटे की याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान मां का पक्ष रख रहे वकील ने याचिका का कड़ा विरोध किया। मां के अनुसार, उसका बेटा शराब पीता है। वह उसके साथ अच्छे से पेश नहीं आता। उसके बेटे ने गलत तरीके से उसके बैंक खाते से पैसे भी निकाले हैं। शाहपुर में उसका फ्लैट है।
इसलिए बेटे के पास खुद के परिवार के साथ रहने के लिए कोई दूसरा घर नहीं है, यह बात गलत है।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद जस्टिस मारने ने कहा कि मुझे ट्रिब्यूनल के आदेश में कोई खामी नजर नहीं आती है। जस्टिस मारने ने कहा कि रेकॉर्ड से स्पष्ट होता है कि बेटे का पास शाहपुर में फ्लैट है। चूंकि अब वह शाहपुर के घर में शिफ्ट हो रहा है। इसलिए ट्रिब्यूनल के आदेश में सीमित बदलाव कर उसे गुजारा भत्ता देने से मुक्त किया जाता है, लेकिन दूसरे भाई-बहन को गुजारा-भत्ता देना जारी रखेंगे।


