भिवंडी में मंदी व आर्थिक तंगी से दीपावली त्यौहार का रौनक गायब
Bhiwandi's recession and economic hardship have lost the joy of Diwali festival
भिवंडी में मंदी व आर्थिक तंगी से दीपावली त्यौहार का रौनक गायब दीवाली से पहले व्यापारियों के दिवालिया होने का भय,भीषण मंदी से पावरलूम उद्योग का कारोबार चौपट
मुस्तकीम खान
भिवंडी ।। विगत कई वर्षों से लगातार कपड़ा व्यापार में मंदी व आर्थिक तंगी का भीषण संकट झेल रहे पावरलूम उद्योग से जुड़े कारखाना मालिक व मजदूरों की दीवाली इस वर्ष फीकी हो रही है।मालिक व मजदूर कैसे दीवाली मनाए उनके सामने समस्या बन गई है।जबकि मार्केट से मंदी के कारण दीवाली का रौनक गायब है।जिसे लेकर लोगों में कोई उत्साह नहीं दिखाई दे रहा है।दीवाली से पहले लूम उद्योग से जुड़े व्यापारी दिवालिया होने की कगार पर खड़े हैं।
पावरलूम उद्योग नगरी भिवंडी पिछले एक दशक से भीषण आर्थिक संकट व मंदी के दौर से जूझ रही है। व्यापार में भारी घाटा उठा रहे लूम कारखाना मालिक व कपड़ा व्यवसाय से जुड़े व्यापारी की पूरी पूँजी लगभग टूट चुकी है। सैकड़ों कपड़ा व्यापारी कर्ज के बोझ से दबे हुए हैं। इसी कारण भिवंडी में आने वाला दिवाली का त्यौहार भी केवल औपचारिकता के तौर पर मनाया जाएगा।जिसका कारण मार्केट से पैसे का गायब होना है। शिबली टेक्सटाइल के मालिक तहजीब शेख का कहना है कि दूसरे प्रदेश के व्यापारी कम भाव में कपड़ा की मांग करते है ।इस कारण ,कारखाना मालिको को अपना कपड़ा घटे में बेचना उनकी मजबूरी बन गई है। पहले से उत्पादन किया हुआ कपडे का भारी स्टाक जमा है।
इसके साथ ही कपड़ा व्यापार जगत से जुड़े लोगों का यह भी मानना है कि लागत से कम दाम में कपड़ा खरीदने वाले बड़े व्यापारी कपड़ा खरीदते हैं । कैश में बेचे हुए कपडे की पेमेंट एक माह में मिलती है और उधारी(क्रेडिट) में बेचे हुए कपडे का पेमेंट अब 60 दिन की जगह 90 दिन व 120 दिन में भी मिलना मुश्किल हो गया है।पूरी पूँजी का पैसा बाजार में उधार डालकर आज ग्रे कपड़ा व्यापारी कंगाल हो गया है।बाजार में कब किसका दिवाला निकल जाएगा इसका कोई भरोसा नहीं है।इस बात से कपड़ा व्यापारी व यार्न व्यापारी की नींद हराम हो गयी है।एक दशक में आर्थिक घाटे के कारण एक दर्जन व्यापारी ने करोड़ों रुपये का दिवाला मारकर भूमिगत हो गए है।आर के टेक्सटाइल्स के मालिक राकेश केसरवानी व पॉवरलूम उद्योग से जुड़े उद्योगपति व कारोबारियों का कहना है कि बाजार में रोटेशन से धंधा करने वाले कब तक इसकी टोपी उसके सिर फिराते रहेंगे।
ऐसी स्थिति में न तो लूम मालिक के पास दीवाली मानाने का पैसा है और न ही वे इस वर्ष अपने मजदूरो को दीवाली पर बोनस व मिठाई देने के मुड़ है।पैसे के आभाव में लूम उद्योग से जुड़े लोग कैसे दीवाली मनाए उनके सामने गंभीर समस्या खड़ी हो गई है।कुल मिलकर तंगी व मंदी से जूझ रही लूम उद्योग से जुड़े लोग इस बार फीकी दीवाली होने जा रहा है।जिसे लेकर लोगो में कोई उत्साह नहीं दिख रही है।दीवाली से पहले बाजार से दीवाली की रौनक गायब है।

