मुंबई: महायुति द्वारा राज ठाकरे को अपने पक्ष में लाने के प्रयास तेज; मनसे और भाजपा के बीच गठबंधन की अटकलें लगाई
Mumbai: Mahayuti intensifies efforts to get Raj Thackeray on its side; speculations rise of alliance between MNS and BJP

आगामी मुंबई महानगरपालिका चुनाव के मद्देनजर ठाकरे बंधुओं के एकजुट होने की अटकलों के बीच अब महायुति द्वारा राज ठाकरे को अपने पक्ष में लाने के प्रयास तेज हो गए हैं। पिछले ही हफ्ते उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अपने व्यस्त कार्यक्रम से समय निकालकर मनसे प्रमुख राज से मुलाकात की थी। तभी से मनसे और भाजपा के बीच गठबंधन की अटकलें लगाई जा रही थीं।
मुंबई: आगामी मुंबई महानगरपालिका चुनाव के मद्देनजर ठाकरे बंधुओं के एकजुट होने की अटकलों के बीच अब महायुति द्वारा राज ठाकरे को अपने पक्ष में लाने के प्रयास तेज हो गए हैं। पिछले ही हफ्ते उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अपने व्यस्त कार्यक्रम से समय निकालकर मनसे प्रमुख राज से मुलाकात की थी। तभी से मनसे और भाजपा के बीच गठबंधन की अटकलें लगाई जा रही थीं। अब, महायुति का हिस्सा रहे एकनाथ शिंदे गुट ने भी राज को अपने पक्ष में करने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। आगामी मुंबई और ठाणे महापालिका (नगर निगम) चुनावों के लिए राज को अपने साथ लाने के लिए उद्धव भी सक्रिय हैं। लेकिन यदि दोनों ठाकरे बंधु एक साथ आते हैं, तो मराठी मतों का रुझान उनकी ओर हो सकता है, जिससे अन्य पक्षों को नुकसान हो सकता है।
उदय सामंत को सौंपी जिम्मेदारी
ठाकरे गुट के नेताओं द्वारा मनसे के साथ गठबंधन की बातें और बैनरबाजी की जा रही है। इसी पृष्ठभूमि में अब मुख्यमंत्री और शिंदे ने भी राज को अपने पक्ष में लाने के प्रयास शुरू किए हैं। सूत्रों के मुताबिक, राज को अपने पाले में लाने की जिम्मेदारी शिंदे ने मंत्री उदय सामंत को सौंपी है। कुछ दिन पहले सामंत शिवतीर्थ पर ‘खिचड़ी’ खाने पहुंचे थे, तभी से मनसे और शिंदे गुट के बीच बातचीत शुरू हुई है और अब यह बातचीत अंतिम चरण में पहुंच गई है। चर्चा है कि इस बातचीत को अंतिम रूप देने के लिए शिंदे जल्द ही राज को स्नेहभोजन के लिए आमंत्रित करेंगे। इससे यह संभावना बढ़ गई है कि ठाकरे
बंधुओं के एक होने की चर्चा पर विराम लग सकता है।
ठाकरे गुट और मनसे के कार्यकर्ताओं में भले ही दोनों भाइयों के एक साथ आने की इच्छा हो, लेकिन पार्टी के शीर्ष नेताओं में वैसा उत्साह नहीं दिख रहा है। ऐसे में जब मनसे के पास दोनों शिवसेना गुटों के साथ गठबंधन का विकल्प मौजूद है, जिसके के कारण अब तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि मनसे इनमें से किसी एक के साथ गठबंधन करती है या एकला चलो रे की नीति अपनाकर स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ती है।