बीजेपी के सीनियर लीडर व पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली का शनिवार को निधन हो गया
अरुण जेटली का परिचय यूं दिया जाए, एक वकील से राजनेता बने तो यह बिल्कुल वैसे ही होगा जैसे सुनील गावस्कर के लिए यह कहना क्रिकेटर से कमेंटेटर बने। शानदार रणनीतिकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे भरोसेमंद सहयोगियों में से एक, जेटली एक कुशल वकील से बहुत अधिक हैं और राजनीति में अपने कई समकालीनों से कहीं ऊपर। शनिवार को लंबी बीमारी के बाद उनका एम्स में निधन हो गया। एक धारदार कानूनी दिमाग और श्रेष्ठ राजनैतिक कौशल के साथ, जेटली ने अपने विरोधियों को बौद्धिक कौशल से परास्त कर डाला, फिर भी एक गरिमापूर्ण व श्रेष्ठता का भाव बनाए रखा, जिसने उन्हें उनका भी प्रशंसा पात्र बनाया जो कभी उनके निशाने पर रहे। वे एक पूर्ण राजनीतिज्ञ के रूप में खिल रहे थे। जेटली ने खुद को कानूनी हलकों में एक चमकदार सितारे के रूप में स्थापित किया था। देश के शीर्ष वकीलों में से एक बनने के बावजूद, राजनीति उनके स्वभाव में थी।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के गलियारों से शास्त्री भवन तक बदलाव का सफर सुगमता से तय किया। पहले वाजपेयी सरकार में कनिष्ठ मंत्री के रूप में सूचना और प्रसारण मंत्रालय और विनिवेश का कार्यभार संभाला और फिर जुलाई 2000 में कैबिनेट मंत्री के रूप में कानून, न्याय और कंपनी मामलों व जहाजरानी मंत्रालय का संचालन किया। हालांकि, जेटली कैबिनेट की तुलना में संसद में अधिक फले-फूले। 2004 के बाद जब वाजपेयी सरकार की अप्रत्याशित हार के बाद जेटली उच्च सदन में विपक्ष की आवाज बनकर उभरे। जून 2009 में वे राज्यसभा में विपक्ष के नेता बने और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के खिलाफ कई ताबड़तोड़ हमलों की अगुवाई की। उनके तीखे भाषणों की गूंज राज्य सभा की ऊंची छतों पर गूंज उठी, क्योंकि उन्होंने सरकार को भ्रष्टाचार, घोटालों और जिसे वह पॉलिसि पैरालिसिस कहकर पुकारते थे पर जमकर घेरा।
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