बीड : पिछले 70 वर्षों से बाढ़ से जूझ रहे हैं वसंतवाडी गांव के लोग

Beed: The people of Vasantwadi village have been battling floods for the last 70 years.

बीड : पिछले 70 वर्षों से बाढ़ से जूझ रहे हैं वसंतवाडी गांव के लोग

पिछले कई दिन से महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और पश्चिम महाराष्ट्र में भारी बारिश से लोगों का जनजीवन पूरी तरह से अस्त व्यस्त हो चुका है. बारिश और बाढ़ की वजह से लोगों का दुकान और मकान पानी में डूब चुका है. NDRF और SDRF की टीम बीड, सोलापुर, धाराशिव में डेरा जमाया हुआ है. बाढ़ में फंसे हुए लोगों का रेस्क्यू ऑपरेशन कर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा रहा है.

बीड : पिछले कई दिन से महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और पश्चिम महाराष्ट्र में भारी बारिश से लोगों का जनजीवन पूरी तरह से अस्त व्यस्त हो चुका है. बारिश और बाढ़ की वजह से लोगों का दुकान और मकान पानी में डूब चुका है. NDRF और SDRF की टीम बीड, सोलापुर, धाराशिव में डेरा जमाया हुआ है. बाढ़ में फंसे हुए लोगों का रेस्क्यू ऑपरेशन कर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा रहा है. सरकार स्थिति पर निगरानी बनाए हुए और हर संभव मदद करने का ऐलान किया है. प्रशासन का मानना है कि बारिश रुकने के बाद बाढ़ का पानी उतरेगा और दो से दिन में राहत मिलेगी, लेकिन आज हम आपको महाराष्ट्र के एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं. जहां के लोग पिछले सत्तर वर्षों से बाढ़ जैसे हालात से गुजर रहे हैं. ना गांव में कोई रास्ता है ना पुल. बड़े हो या फिर बुजुर्ग या छोटे बच्चे रोजाना जान हथेली पर पानी के बीच से निकलकर आवागमन करते हैं. 
400 आबादी वाला है गांव

 

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बीड के वसंतवाडी गांव के लोग पिछले 70 वर्षों से रोज पानी की इस आफत से ही जूझ रहे हैं. 400 की आबादी वाला यह गांव आज भी पक्के रास्ते और सार्वजनिक परिवहन से पूरी तरह वंचित है. यहां के लोग हर रोज नदी पार कर जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने को मजबूर हैं. वसंतवाडी से लांबरवाडी तक का सफर आज भी नन्हें बच्चों के लिए खौफनाक साबित हो रहा है. रोज़ सुबह जब स्कूल के लिए निकलने का समय होता है, तो बच्चों को पालकों के कंधों पर या ट्यूब पर बैठाकर नदी पार कर स्कूल भेजा जाता है. जिवीका सानप, एक छोटी बच्ची, रोते हुए कहती है कि पप्पा, मुझे पानी से बहुत डर लगता है, मेरे कपड़े और टिफिन भीग जाते हैं, मुझे रास्ता चाहिए. 
गांव के युवाओं की नहीं होती शादी

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गांव में कोई पक्का रास्ता नहीं है और न ही कोई सार्वजनिक परिवहन सुविधा. बीमार, गर्भवती महिलाएं, बुज़ुर्ग सभी को ट्यूब के सहारे नदी पार करनी पड़ती हैं. गांव के निवासी बन्सी सानप कहते हैं, हमारे पास जमीन है, पानी है, घर है, लेकिन रास्ता नहीं है. जब कोई रिश्ता आता है तो सबसे पहले यही पूछते हैं कि आपके गांव तक सड़क है क्या? इसी वजह से गांव के युवाओं की शादियां भी नहीं हो पा रहीं. गांव के लोगों की नाराज़गी सरकार और सिस्टम से साफ दिखती है. महिला मथुरा सानप कहती हैं, तुम्हारें पंद्रह सौ रूपये का हम क्या करें? हमारी बहनों को तो रास्ता ही नहीं है कहीं जाने का. दूध, बकरी, पानी सभी सामान ट्यूब पर लाना ले जाना पड़ता है. वसंतवाडी के लोगों ने चार पीढ़ियां इस उम्मीद में गुजार दीं कि शायद अबकी बार पक्का रास्ता मिलेगा, लेकिन हर बार वादे अधूरे ही रह गए.
 

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Sabri Human Welfare Foundation Ngo

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