संसदीय बोर्ड में बड़ा बदलाव ... भाजपा नेता नितिन गडकरी को किया दरकिनार
Big change in the parliamentary board... BJP leader Nitin Gadkari was sidelined
भाजपा ने अपने संसदीय बोर्ड में बड़ा बदलाव किया। इस बदलाव से यह स्पष्ट संकेत मिला है कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व अब अपने समकक्ष नेताओं को साफ करने में जुट गया है। इसी मुहिम के तहत भाजपा में महाराष्ट्र के कद्दावर भाजपा नेता नितिन गडकरी को दरकिनार कर दिया गया है।
मुंबई : भाजपा ने अपने संसदीय बोर्ड में बड़ा बदलाव किया। इस बदलाव से यह स्पष्ट संकेत मिला है कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व अब अपने समकक्ष नेताओं को साफ करने में जुट गया है। इसी मुहिम के तहत भाजपा में महाराष्ट्र के कद्दावर भाजपा नेता नितिन गडकरी को दरकिनार कर दिया गया है।
संसदीय बोर्ड से गडकरी की छुट्टी करके भाजपा ने संसदीय बोर्ड में महाराष्ट्र के प्रतिनिधित्व को भी कमजोर कर दिया है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि भाजपा का केंद्रीय संसदीय बोर्ड पार्टी की शीर्ष यानी सबसे ताकतवर बॉडी है और पार्टी के सभी प्रमुख पैâसले यही लेती है।
नए संसदीय बोर्ड में एकमात्र राजनाथ सिंह ही वरिष्ठ नेता बचे हैं। राजनाथ को छोड़कर बोर्ड में अन्य नेताओं का कद काफी छोटा है। उधर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का भी कद कम करते हुए उन्हें संसदीय बोर्ड से बाहर कर दिया गया है। ऐसे में संसदीय बोर्ड में कमजोर व अपेक्षाकृत जूनियर नेताओं के रहने से शीर्ष नेतृत्व के सामने कोई चुनौती नहीं रहेगी।
संसदीय बोर्ड में कुल ११ सदस्य हैं। इनमें पार्टी अध्यक्ष के नाते जेपी नड्डा शामिल हैं और वे इसके अध्यक्ष भी हैं। उनके अलावा पीएम नरेंद्र मोदी, अमित शाह, बीएस येदियुरप्पा, सर्बानंद सोनोवाल, के. लक्ष्मण, इकबाल सिंह लालपुरा, सुधा यादव, सत्यनारायण जटिया भी इसके सदस्य हैं। वहीं पार्टी के संगठन महामंत्री बी.एल. संतोष को भी इसका सदस्य बनाया गया है।
जहां तक गडकरी का सवाल है तो उनके बारे में कहा जा रहा है कि वे काफी मुखर होकर बोलते हैं और पार्टी को उनके दिए कुछ हालिया बयान रास नहीं आए। गडकरी केंद्र की नीतियों पर कई बार निशाना साध चुके हैं। इससे शीर्ष नेतृत्व को कई बार शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता था। माना जा रहा है कि इन्हीं सब वजहों से गडकरी का पत्ता कटा है।
बता दें कि पार्टी इसके पहले कई वरिष्ठ नेताओं को हाशिए पर डाल चुकी है। लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के साथ इसकी शुरुआत हुई थी। बाद में यशवंत सिन्हा और सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसे नेता भी दरकिनार कर दिए गए।
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