नवी मुंबई में अपने कैम्पस खोलने जा रहे हैं 5 बड़े अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय

5 big international universities are going to open their campuses in Navi Mumbai

नवी मुंबई में अपने कैम्पस खोलने जा रहे हैं 5 बड़े अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय

हर्ष का विषय है कि 5 बड़े अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय महाराष्ट्र के नवी मुंबई में अपने कैम्पस खोलने जा रहे हैं। इनमें यार्क (इंग्लैंड), इलिनॉय (अमेरिका), एबर्डीन (स्कॉटलैंड), वेस्टर्न आस्ट्रेलिया (आस्ट्रेलिया), इस्तितुतो यूरोपियो दि डिजाइन (इटली) का समावेश है। सवाल यह है कि क्या उपराजधानी नागपुर में एकाध नामी विदेशी विश्वविद्यालय का कैम्पस नहीं खोला जा सकता था?

मुंबई : हर्ष का विषय है कि 5 बड़े अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय महाराष्ट्र के नवी मुंबई में अपने कैम्पस खोलने जा रहे हैं। इनमें यार्क (इंग्लैंड), इलिनॉय (अमेरिका), एबर्डीन (स्कॉटलैंड), वेस्टर्न आस्ट्रेलिया (आस्ट्रेलिया), इस्तितुतो यूरोपियो दि डिजाइन (इटली) का समावेश है। सवाल यह है कि क्या उपराजधानी नागपुर में एकाध नामी विदेशी विश्वविद्यालय का कैम्पस नहीं खोला जा सकता था? विदर्भ क्षेत्र को क्यों इससे वंचित रखा जा रहा है? नागपुर की सारे देश से कनेक्टिविटी है और जगह भी काफी मिल सकती है। नागपुर या अमरावती ज्ञान का केंद्र बन सकते थे।

 

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क्या महायुति सरकार ने गठबंधन में शामिल नेताओं को खुश करने के लिए विदर्भ के हितों का बलिदान दिया? यदि अब भी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी अपने शहर के लिए किसी अन्य विदेशी विश्वविद्यालय की सौगात ला सकें तो यह विदर्भवासियों के शैक्षणिक हित में होगा। भारत के 14 लाख विद्यार्थी विदेश जाकर उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। उन्हें मिलनेवाली स्कालरशिप की रकम के बावजूद विदेश में पढ़ाई पर बहुत मोटी रकम खर्च करनी पड़ती है। भारत में विदेशी विश्वविद्यालय का कैम्पस आने से खर्च में कमी आएगी। विदेशी यूनिवर्सिटी की डिग्री कम खर्च में हासिल की जा सकेगी। प्रतिस्पर्धा में यहां के शिक्षा संस्थान भी अपने यहां आवश्यक सुधार करेंगे। 

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विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने उच्च शिक्षा का अंतरराष्ट्रीयकरण करने के उद्देश्य से विश्व के 500 टॉप विश्वविद्यालयों को भारत आने की अनुमति दी है। क्या ये विदेशी विश्वविद्यालय अपने पाठ्यक्रम के साथ अपनी फैकल्टी (शिक्षकों) को भी साथ लाएंगे? भारत में तो कितनी ही यूनिवर्सिटी ऐसी हैं जहां पूरा टीचिंग स्टाफ नहीं है और अंशकालीन प्राध्यापकों से काम चलाया जाता है। विदेशी विश्वविद्यालयों को प्रवेश नियमों, पाठ्यक्रम और फीस के बारे में स्वायत्ता दी जाएगी। उम्मीद करनी होगी कि जिस स्तर की शिक्षा ये विश्वविद्यालय अपने मूल स्थान पर देते हैं वैसा ही स्तर भारत में भी कायम रखेंगे और अपने अच्छे से अच्छे प्रोफेसर लेकर आएंगे। 

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