
मीरा-भायंदर महानगरपालिका नए वर्ष २०२३ में कंगाली के कगार पर
Mira-Bhayander Municipal Corporation on the verge of bankruptcy in the new year 2023
प्रशासकीय राज में मीरा-भायंदर महानगरपालिका नए वर्ष २०२३ में कंगाली के कगार पर पहुंच गई है। एक तरफ जहां ठेकेदारों की बिल अदायगी के लिए मनपा के सुरक्षित फिक्स डिपॉजिट को तोड़कर बैंक से रकम की निकासी की गई है.
भायंदर : प्रशासकीय राज में मीरा-भायंदर महानगरपालिका नए वर्ष २०२३ में कंगाली के कगार पर पहुंच गई है। एक तरफ जहां ठेकेदारों की बिल अदायगी के लिए मनपा के सुरक्षित फिक्स डिपॉजिट को तोड़कर बैंक से रकम की निकासी की गई है, वहीं दूसरी तरफ नए वर्ष में शहर के नागरिकों पर नए टैक्स लागू कर मनपा प्रशासन कंगाली से उबरने की जद्दोजहद करती हुई दिखाई दे रही है, जिससे मनपा आयुक्त-प्रशासक दिलीप ढोले की प्रशासकीय कार्यक्षमता पर सवाल उठने लगे हैं।
चालू वित्तीय वर्ष में मनपा का बजट २,२५२.६५ करोड़ रुपए का है। मनपा पर वर्तमान में करीब २७१ करोड़ रुपए का कर्ज है, जबकि मनपा के चालू खाते में मात्र ४ से ५ करोड़ रुपए ही जमा हैं, वहीं मनपा को प्रतिमाह लगभग इतनी ही रकम कर्ज की किश्त भरने में चुकाने पड़ते हैं। इस लिहाज से देखें तो मनपा की तिजोरी बिल्कुल खाली हो गई है।
आर्थिक बुरे वक्त के लिए मनपा बैंकों में फिक्स डिपॉजिट के तहत रकम जमा कर रखती है। इसी प्रकार मीरा-भायंदर मनपा ने भी बैंकों में १९५ करोड़ रुपए की फिक्स डिपॉजिट कर रखी थी, जिसमें से ५५ करोड़ रुपए की फिक्स डिपॉजिट को तोड़कर रकम की निकासी की गई है।
इससे प्रतीत होता है कि मीरा-भायंदर मनपा के बुरे आर्थिक दिन शुरू हो गए हैं। विगत चार माह से ठेकेदारों के बिलों का भुगतान नहीं के बराबर हो रहा। इससे पूर्व मनपा ने बैंकों से १०० करोड़ रुपए ओवर ड्राफ्ट लेने के लिए भी राज्य सरकार से मंजूरी मांगी थी।
वर्तमान में एमबीएमसी पर कुल २७१ करोड़ रुपए का कर्ज है। इसके अलावा हाल ही में सीमेंट-कंक्रीट की सड़कें निर्माण के लिए १,००० करोड़ रुपए कर्ज लेने की अनुमति राज्य सरकार ने दी है। इससे पुराना और नया मिलाकर एमबीएमसी पर कुल १,२७१ करोड़ रुपए कर्ज का बोझ हो जाएगा। मनपा को प्रति वर्ष करीब १७५ करोड़ रुपए कर्जे की किश्त चुकाने में खर्च करने होंगे।
एमबीएमसी की तिजोरी खाली होने और कंगाली के कगार पर पहुंचने की मुख्य वजह फिजूलखर्ची, आय से अधिक कमाई बजट में दर्शाना, पर्याप्त निधि नहीं होने के बावजूद विकास के नाम पर धड़ाधड़ ठेका देना, प्रतिनियुक्ति पर दो उपायुक्त की मंजूरी होने पर भी चार उपायुक्त की नियुक्ति करना, बकाया करों (टैक्स) की शत-प्रतिशत वसूली नहीं करना, आय के नए स्रोत पर ध्यान नहीं देना, अपेक्षित अनुदान नहीं मिलना और कुशल नियोजन का अभाव भी बताया जा रहा है।
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