अदालतों में 10 साल पुराने मामलों में ट्रायल शुरू होना बाकी...
10 years old cases in courts yet to start trial...
मुंबई की अदालतों में 10 साल से अधिक पुराने मामले पड़े हुए हैं, जिसमें अभी तक सुनवाई भी नहीं शुरू हुई है। इन मामलों में आरोपियों ने सुनवाई में देरी का हवाला देते हुए जमानत याचिका दायर की है। सालों से जेल में बंद कुछ आरोपियों बताया भी कहा है कि उन्हें दोषी ठहरा दिया जाए।
मुंबई : मुंबई की अदालतों में 10 साल से अधिक पुराने मामले पड़े हुए हैं, जिसमें अभी तक सुनवाई भी नहीं शुरू हुई है। इन मामलों में आरोपियों ने सुनवाई में देरी का हवाला देते हुए जमानत याचिका दायर की है। सालों से जेल में बंद कुछ आरोपियों बताया भी कहा है कि उन्हें दोषी ठहरा दिया जाए।
गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत मामलों की सुनवाई के लिए नामित मुंबई में दो विशेष अदालतों ने कहा है कि उनके ऊपर “अत्यधिक बोझ” है।
2011 में मुंबई ट्रिपल धमाकों से संबंधित एक मामले में न केवल आरोपी ने बल्कि यहां तक कि जांच एजेंसी (महाराष्ट्र आतंकवाद विरोधी दस्ते) ने भी अगस्त में एक आवेदन दायर किया, जिसमें मुकदमे में रोज सुनवाई की मांग की गई। बता दें कि इस मामले में 11 आरोपियों को आतंकी हमलों के 11 साल बाद भी सुनवाई शुरू होना बाकी है।
13 जुलाई 2011 को दादर, जावेरी बाजार और ओपेरा हाउस में हुए तीन सिलसिलेवार धमाकों में 27 लोगों की मौत हो गई थी और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। अभियोजन पक्ष ने 700 से अधिक गवाहों को प्रस्तुत किया है। 2019 से 2021 के दौरान अलग-अलग कार्यवाही में आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए गए थे लेकिन मुकदमा शुरू होना बाकी है।
एटीएस और आरोपी नदीम अख्तर दोनों ने मामले में दैनिक सुनवाई की मांग की है, जिसपर न्यायाधीश ने कहा कि उनके पहले के न्यायाधीश ने इसी तरह की याचिका पर एक आदेश पारित किया था कि एक अदालत के रूप में प्रतिदिन सुनवाई करना मुश्किल है। अदालत ने नदीम अख्तर की यह कहते हुए खिंचाई की कि वह मामले की हर तारीख पर आवेदन दाखिल कर रहा और उसका कोई छिपा हुआ इरादा है। कोर्ट ने एटीएस की याचिका को भी खारिज कर दिया।
2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपी हारून नाइक की जमानत याचिका को खारिज कर दिया था, यह देखते हुए कि मुकदमे को तेजी से समाप्त करने का निर्देश देते हुए उसके खिलाफ प्रथम दृष्टया सबूत थे। नदीम अख्तर समेत अन्य आरोपियों की जमानत याचिकाएं उच्च न्यायालय में लंबित हैं।
करीब 10 साल पुराने एक अन्य मामले में भी मुकदमा शुरू होना बाकी है। 1 अगस्त 2012 को पुणे के जेएम रोड पर कम तीव्रता वाले पांच विस्फोट हुए थे। नौ लोगों पर अन्य धाराओं के साथ UAPA लगाए गए थे। आरोपियों पर हत्या के प्रयास, भारतीय दंड संहिता के तहत साजिश और यूएपीए और महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम की संबंधित धाराओं सहित अन्य आरोप हैं।
पिछले महीने एक आरोपी मुनीब मेमन ने सुनवाई शुरू होने में देरी का हवाला देते हुए हाई कोर्ट के समक्ष जमानत के लिए अर्जी दी थी। कोर्ट ने कहा कि अपराध की गंभीरता और आरोपी की भूमिका को देखते हुए देरी के आधार पर जमानत के लिए उसकी याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता है।
2008 में इंडियन मुजाहिदीन द्वारा कथित रूप से किए गए दिल्ली, हैदराबाद और अहमदाबाद विस्फोटों से पहले मीडिया घरानों को भेजे गए ईमेल से संबंधित एक मामले में 23 आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। छह आरोपी जमानत पर बाहर हैं जबकि अन्य 14 साल से हिरासत में हैं।
यहां भी अभी ट्रायल शुरू होना बाकी है। इसी तरह मालेगांव 2006 विस्फोट मामले में, विस्फोट के 15 साल बाद भी सुनवाई शुरू नहीं हुई है। मामले के आरोपियों को छह साल की जेल के बाद 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने जमानत दे दी थी।
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