प्रमुख प्रादेशिक दलों में पड़ी फूट के बाद आगामी आगामी लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारे का गणित

Mathematics of seat sharing in the upcoming Lok Sabha and Vidhansabha elections after the split in the major regional parties

प्रमुख प्रादेशिक दलों में पड़ी फूट के बाद आगामी आगामी लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारे का गणित

मुँबई : प्रदेश में गत वर्ष दौरान दो प्रमुख प्रादेशिक दलों में पड़ी फूट के बाद आगामी लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारे का गणित

बदल गया है. पिछली बार महायुती में सर्वाधिक 162 सीटें लड़नेवाली भाजपा को इस बार 140 स्थानों पर लड़ना पड़ेगा, जबकि महाआघाडी में राकांपा पवार तथा उनाठा शिवसेना को कांग्रेस की कड़ी सौदेबाजी का मुकाबला करना पड़ सकता है, कांग्रेस के लिए अधिक सीटें प्राप्त करने का अवसर जानकार मान रहे हैं.

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चर्चा के अनुसार महायुती ने भाजपा और शिवसेना शिंदे गट ने लोसभा तथा विधानसभा चुनाव हेतु सीट वितरण पर चर्चा की थी. जिसमें भाजपा विधानसभा की 238 और शिंदे गट 50 सीटों पर चुनाव लड़ने की संभावना नेताओं ने व्यक्त की थी, किंतु अब राकांपा दो फाड हो गई है. अजीत पवार के नेतृत्व में

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विधायकों का बड़ा समूह महायुती की सत्ता में सहभागी होने से लोकसभा-विधानसभा चुनाव के सीट बंटवारे की बड़ी दिक्कत भाजपा की होने वाली है. अजीत पवार ने विधानसभा की 90 सीटें महायुती में लड़ने की घोषणा कर दी है. ऐसे में शिंदे गट के 50, अजीत पवार गट के 90 तो भाजपा के हिस्से में

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140 सीटें रहेंगी. उसमें भी रिया आठवले और छोटे दलों को उसे समाहित करना पड़ेगा.जानकारों के मुताबिक लोकसभा चुनाव में विजय का गणित सही रखने भाजपा को अपना शत प्रतिशत भाजपा की घोषणा फिलहाल रोकनी पड़ेगी. 140

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स्थानों पर विधानसभा लड़ने की स्थिति में भाजपा को निश्चित ही बहुमत का 145 मैजिक फिगर सहयोगी दलों को साथ लेकर प्राप्त करना होगा. तीनों दलों की महायुती विधानसभा तक कायम रही तो, यह गणित लागू रहेगा. दूसरी तरफ कांग्रेस व राकांपा में पिछला विधानसभा चुनाव 2019 में मिलकर लड़ा था और दोनों के 144-144 प्रत्याशी थे. इस बार कांग्रेस का भाव बढ़ गया है. महाविकास आघाडी के दो घटक शिवसेना एवं राकांपा फूट गए हैं जिससे कांग्रेस 100 से अधिक स्थानों पर लड़ने की तैयारी करनेवाली है.

फलस्वरुप ठाकरे और पवार गट को कम स्थानों पर समाधान मानना पड़ेगा. अब राज्य में भाजपा और कांग्रेस यह राष्ट्रीय दल ही फूटे नहीं है. लोकसभा में कांग्रेस को अधिक सीटें मिली तो विधानसभा में उसकी सीटों की डिमांड बढ़ जाएगी, ऐसा माना जा रहा है.

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